राजनीतिक विशेषज्ञGK:-राजिम विधानसभा में दो विकासखंड है,, पहले है फिंगेश्वर,,, जहां सिकासेर जलाशय का पानी जाता है वह क्षेत्र ऐसा कहीं कोई भी क्षेत्र नहीं बचा होगा जहां पानी नहीं पहुंचता है नहर का पानी सस्ता पानी पहुंचता है बिजली कम लगती है कम गहरे में पानी मिल जाता है,,,, उधर के किसानों को ऐसा कोई भी जमीन नहीं है जहां धान का खरिफ़ और रवि फसल नहीं होता,,, कुछ अपवाद छोड़ सकते हैं,, एक है छुरा विकासखंड,,, उसे आदिवासी विकासखंड यानी पिछड़ा विकासखंड भी कह सकते हैं यहां अभी सामाजिक जागरूकता बिल्कुल दिखाई नहीं देती और वोट किस मुद्दे पर करते हैं आज तक आदिवासी पिछड़ा विकासखंड छुरा को समझाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यह विकासखंड यह निर्णय नहीं कर पता है आखिर हमारे क्षेत्र में फिंगेश्वर विकासखंड की अपेक्षा क्यों कार्य नहीं हुआ है कौन कर सकता है किस पर भरोसा करें,, अब तक के जितने भी विधायक रहे हैं एक दो को छोड़कर सभी विधायक फिंगेश्वर विकासखंड से ही रहे हैं , अब तक जितने भी विधायक रहे हैं अलग-अलग इस मुद्दे पर बयान आता है कहते हैं कलेक्टर एनओसी नहीं दे रहा है, कोई विधायक कहते हैं दिल्ली में हमारा सरकार नहीं है इसलिए अधूरा है, कई लोग यह कहते हैं फॉरेस्ट विभाग वन विभाग अनुमति नहीं दे रहा है, लेकिन जनता को सच्चाई इतना मालूम नहीं है की सरकार और सिस्टम ने हीं फॉरेस्ट विभाग को इतना जटिल कर दिया है कि सार्वजनिक मुद्दे पर भी अनुमति मिलना काफी मुश्किल भरा कार्य होता है और यह सिस्टम और सरकार ने ही किया है, चाहे सरकार में कोई भी रहे सबका बराबर का हाथ है,और राजनीतिक पार्टियों उस विकासखंड क्षेत्र को टिकट देती है। अब तक के 75 साल की आजादी की इतिहास में यही देखें तो जो छुरा विकासखंड है राजनीतिक पार्टियों को पता है यह विकासखंड के मतदाता उतने जागरूक नहीं है निर्णय नहीं कर पाते किसको अपना नेता चुने,, छुरा विकासखंड में देखें तो छोटे-छोटे कई डैम बांध निर्माण हुए हैं जो अधिकतर खरीफ़ फसल के लिए बरसात का फसल होता है रवि फसल के लिए बहुत कम रकबा क्षेत्र में ही सिंचाई होता है। लगातार विद्युत कनेक्शन बढ़ाने के कारण इस क्षेत्र में वोल्टेज की भी समस्या रहती है जो आने वाला रवि फसल में बिल्कुल दिखाई देता है,,। उसे समय किसानों को मजदूरों को ठेका में खेती करने वालों को एहसास होता है आखिर छुरा विकासखंड में इनका क्या दोष है जो अब तक पिछड़ा इलाका आज भी है। इस क्षेत्र में 132 केवी उपकेंद्र एवं इंदिरा गांधी के समय से पीपरछेड़ी बांध अधूरा है,,, पीपर छड़ी बांध बनने से लगभग 25 गांव लाभित होंगे,, लगभग इस क्षेत्र में उतने गांव को जोड़ दे लगभग 80000 मतदाता इस क्षेत्र में अपना निर्णायक वोट करेंगे जो बिल्कुल प्रभावित हैं,, क्या निर्णय करेंगे वह तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा 3 दिसंबर कौन बनेगा राजिम विधानसभा का सिकंदर? यही सवाल सबके मन में घूम रहा है आसपास में चर्चा का विषय बना है आखिर किस मुद्दे पर छुरा विकासखंड इस बार वोटिंग करेगी।
जब नलकूप फेल होता है तब इस क्षेत्र के किसानों मजदूरों को बांध का याद आता है, नलकूप के लिए पानी के लिए गहरी क्षेत्र में खुदाई होता है अधिक पैसा लगता है तब बांध का याद आता है, जब अल्प वर्षा होती है बारिश नहीं होती है तब इस क्षेत्र के किसानों को बांध का याद आता है,,,, लाखों लीटर पानी बह जाता है तब बांध का पानी याद आता है,, जब बिजली और वोल्टेज की समस्या होती है तब बांध का याद आता है,। बांध बन जाने से बिजली की समस्या खत्म हो जाएगी। कई बोरवेल्स ऑटोमेटिक बांध बन जाने के कारण समाप्त हो जाएंगे।
इस क्षेत्र में यह कार्य नहीं होगी आने वाला समय में भारी बिजली संकट के साथ-साथ जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी क्योंकि बोरवेल से भूमिगत जल स्रोत लगातार नीचे जा रहे हैं, एवं गांव-गांव में नल जल योजना का पानी टंकी बना है उसमें भी पानी आपूर्ति सही से होना मुश्किल है। क्योंकि जल स्तर लगातार घट रहा है और जिनके किसानों के नलकूप है उनकी हालत अच्छी है जिनके पास नहीं है उनका स्थिति खराब है केवल एक ही फसल ले पाते हैं विकास नहीं हो पा रहा है बराबर सामूहिक रूप से।