हरिभूमि खबर को कह सकते हैं पेड न्यूज जैसे आचार संहिता में नहीं करना रहता है। उदाहरण श्री गुरु ग्लोबल न्यूज का!

कुछ दिन महिने प्रियंका गांधी वाड्रा छत्तीसगढ़ आई थी,, बहुचर्चित,, प्रिंट मीडिया जिसको हरिभूमि के नाम से जानते हैं,,,, उन्होंने अपने फ्रंट पेज पर,,, प्रियंका गांधी वाड्रा के स्वागत में बिछाए गए फूल को गुलाब के फूल को फ्रंट पेज में दर्शाया गया,,, उसे समय तो खैर आचार संहिता नहीं थी और आचार संहिता के पर पेड न्यूज और किसी एक के खिलाफ पक्षपाती न्यूज़ को आचार संहिता का उल्लंघन मानते हैं,, सवाल उठता है कि यह केवल आचार संहिता में क्यों होता है,, मीडिया को हमेशा लोकतांत्रिक नापतोलकर ही खबर उठाना चाहिए,, चलो मान लेते हैं प्रियंका गांधी वाड्रा कोई संवैधानिक पद पर नहीं है मात्र कांग्रेस के संगठन में महासचिव हैं गांधी परिवार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की बेटी है,, उनके स्वागत में कांग्रेस पार्टी खर्च कर रही है तो इसे हरि भूमि को इतने अपने फ्रंन्ड पेज पर दर्शा करके क्या प्रदर्शित करना चाहती है,,,, क्या हरिभूमि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मोहन भागवत के स्वागत एवं उसके कार्यक्रम को अपने फ्रंट पेज पर फिजूल खर्ची को दर्शाती है ,एवं कई ऐसे देश में लोग हैं जिसके सुरक्षा में जेड सिक्योरिटी है कंगना राणावत कई ऐसे लोग हैं उनके सुरक्षा में जनता का पैसा खर्च होता है क्या हरिभूमि यह सवाल उठाती है,,,, इससे एक प्रकार का स्पष्ट संदेश श्रोतागण के पास जा रहा है कि आप पत्रकार मीडिया हो पर सवाल उठता है कि पार्टी का हो,, आजकल मीडिया पत्रकारों का भी पार्टी बन चुका है उदाहरण के लिए जैसे हरिभूमि ने उसे समय किया हरिभूमि ने वही किया जो विपक्ष यानी कांग्रेस के विपक्ष है जो सवाल उठाना चाहिए जो कांग्रेस के जो विपक्ष हैं उसके हिसाब से खबर चला रहे हैं यानी जो काम विपक्ष को करना चाहिए वही काम हरिभूमि कर रही थी,, एक प्रकार का यह पेड न्यूज़ भी कह सकते हैं विपक्ष के हिसाब से काम करना या उनके समर्थन में काम करना अगर हरिभूमि ऐसा नहीं है तो मोहन भागवत एवं कई ऐसे नेता है जो संवैधानिक पद पर नहीं है उनके खबर पर उनके स्वागत पर फिजूल खर्ची पर क्यों सवाल नहीं उठाती,! मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है लेकिन आजकल बड़े से बड़े न्यूज़ चैनल विपक्ष एवं सत्ता के लोकतंत्र में अलग-अलग पार्टियों के हिसाब से काम करने लग गए हैं,, एक प्रकार का निष्पक्षता बिल्कुल नहीं कह सकते,, और यह जरूरी भी है पेट के लिए करना पड़ता है क्योंकि सब चीज चलाना पड़ता है कोई सरकारी सहायता और महीने का तन्ख्वा तो निश्चित नहीं है मीडिया के लिए,।,,, बड़ा सा बड़ा मीडिया चैनल किसी बड़े पार्टी एवं संगठन सरकार के बीच बिल्कुल फंडिंग और विज्ञापन पर आधारित निर्भर रहता है।

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