ट्राइबल क्षेत्र के सरकारी अस्पताल खुद बीमार क्योंकि यहां के लोग हैं मानसिक गुलाम?

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के प्रिंट मीडिया पत्रिका में खबर आया था जो काफी वायरल हो रहा है, यहां तो स्पष्ट कर देते हैं गांधीजी के तीन बंदर हैं , लोकतंत्र के चौथा स्तंभ के खबर का कोई असर नहीं होता भले ही देश आजादी का अमृत महोत्सव मना चुका है प्रदेश का यही हाल है, जहां 15 साल बीजेपी शासन कर चुकी है और केन्र्द में उनका सरकार है, आयुष्मान योजना की बात करते हैं, यह योजना ऐसा लगता है निजी क्षेत्र को फायदा पहुंचाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने बनाया है,खबर यह है कि गरीब आदिवासियों को नहीं मिल रही सोनोग्राफी की सुविधा है। मजबूरी में पीड़ितों को प्राइवेट निजी क्लीनिक में कराना पड़ रहा है, सोनोग्राफी के लिए आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है गरीबों पर, कई कलेक्टर आए और गए अधिकारी जिम्मेदार अधिकारी इस पर मौन है,, गुरु ग्लोबल न्यूज़ मतलब इंटरनेशनल न्यूज़,, छत्तीसगढ़ को बने 23 साल हो गए और गरियाबंद को बने लगभग 10 साल हो गए पहले ही स्पष्ट कर देते हैं गरियाबंद जिला एक ट्राइबल जिला है कोई भी यहां नौकरी करना नहीं चाहता क्योंकि ट्राइबल जिला है यहां ट्रांसफर होने के बाद अपना फिर से ट्रांसफर कराने की जुगाड़ में लग जाते हैं, लेकिन एक डॉक्टर यहां कई सालों से हैं यह न्यूज़ में छपा है उनके पत्नी के नाम पर निजी क्लीनिक है अस्पताल है, सरकारी अस्पताल के मरीज वहां अपना इलाज कराने की मजबूर है मतलब गरीबों के साथ यहां शोषण हो रहा है,, गरियाबंद जिला ही नहीं देश में ऐसे 130 जिले हैं जो ट्राइबल जिले हैं, जहां पर लोगों का मानसिक विकास नहीं हुआ है यह भी कह सकते हैं, इसके लिए जिम्मेदार मीडिया एवं स्थानीय नेता एवं जनता सभी जिम्मेदार है, जब इनके पास वोट मांगने जाओगे तो पैसा मांगेंगे दारू मांगेंगे,, तब किसी भी तरह पोलिंग बूथ पर पहुंचेंगे,, कहां सवाल कहां से उठाएंगे,, अपने जनप्रतिनिधि को बोल नहीं सकते,, अधिकारी तो मौन ही रहेंगे क्योंकि जनप्रतिनिधि खुद मौन है,, प्राइवेट अस्पतालों में इसलिए विकास होता है क्योंकि पार्टी रूलिंग में हो या विपक्ष वो फंडिंग वहीं से होता है, पूरे देश की यही हाल है,, मीडिया इसलिए नहीं उछालती क्योंकि मीडिया कई मीडिया दबाव में रहते हैं, मीडिया को तो गरीबों का एवं शोषित समाज का खबर उठाने पर खबर चलाने पर उनको रोजी-रोटी कहां से मिलेगा, खबर नहीं चलाने पर उनको रोजी-रोटी मिलता है तो कौन चलाएगा,? मीडिया को तो सरकार तरफ से मासिक वेतन भुगतान तो नहीं मिलता जो सवाल उठाएगा, अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि और नेता के हिसाब से काम करेंगे यह तो पूरे देश में होता है, गरियाबंद की बात आप छोड़ दीजिए। क्योंकि गरियाबंद जिला में कई मीडिया वाले हैं एक मीडिया खबर चलाता है बाकी मीडिया खबर नहीं चलाते, क्यों नहीं चलाते, क्योंकि इसका उत्तर खबर पढ़ने वालों के पास ही है और जनता के पास ही है,,

देश में सरकारी स्कूल सरकारी टेलीकॉम सरकारी अस्पताल जिस दिन बर्बाद हो जाएंगे उस दिन पब्लिक को एहसास होगा यही अच्छा था, अभी तो कम शोषन हो रहा है फिर और शोषण होने लग जाएगा, चाहे इंडियन रेलवे को देख लो वंदे भारत के नाम पर कितना पैसा है अधिक पैसा ले रही है थोड़ा सा टाइम बचा रही है अपेक्षा पैसा ज्यादा है, और इसके लिए दोषी जनता ही है क्योंकि मानसिक विकास नहीं हो रहा है। सब तरफ निजी क्षेत्र को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया जा रहा है देश को 10 परसेंट लोग चला रहे हैं 90 परसेंट का शोषण हो रहा है।

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