राजनीति विशेषज्ञ गोल्डन यादव:-कहते हैं कि ताला बनने के बाद उसकी चाबी भी बनता है यानी उसको कैसे खोलना है, कानून बनाना माननीय सांसदों का काम है, और समय-समय पर कुछ कमियां को इसे दूर भी किया जाता है दल बदल कानून में अभी भी कमियां है, वर्तमान में अभी केंद्र भाजपा सरकार है, दल बदल कानून तो सभी पर लागू होता है लेकिन जिसकी शक्तियां होती है केंद्र में एवं राज्य में सरकारें होती है उसका चुनाव में उपचुनाव में यानी विधायकों के सदस्यता समाप्त में अधिकतर जीत ही हासिल होती है, यानी दल बदल कानून में अभी भी कमजोरी है और उसका लाभ काबिल पॉलिटिशियन लोग बिल्कुल उठाएंगे और जब तक संशोधन नहीं होगा तब तक और उठाएंगे,। जो विधायक दल परिवर्तन करेगा उसी में चुनाव होगा जिस पार्टी में जाएगें, वही पार्टी उनका टिकट देगी और चुनाव में जनता को भी मालूम है किसका सरकार किसको वोट देने में फायदा है, कम मार्जिन से जीतने वाले सीटों में यही स्थिति रहती है। 2023 विधानसभा चुनाव के पांच राज्यों के एग्जिट पोल आ गए हैं और 3 दिसंबर के चुनाव परिणाम आ जाएंगे,, कांग्रेस की सिट अगर जादुई आंकड़े से ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई तो सरकार में टूट का खतरा बिल्कुल बना रहेगा,, सरकार स्थाई रूप से चलेगी 5 साल तक बिल्कुल असंभव सा रहेगा,, क्योंकि कांग्रेस में छत्तीसगढ़ में खेमेबाजी है,, मध्य प्रदेश में भी खेमेबाजी है और राजस्थान में भी है,,, क्योंकि 2018 में कांग्रेस चेहरा कोई और का सामने रखी और मुख्यमंत्री गांधी परिवार ने अपने हिसाब से बनाया,, भले ही कांग्रेस का अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं, केवल नाम के,लेकिन कांग्रेस पार्टी का सर्वे शर्वा पूरा नेतृत्व गांधी परिवार के पास ही है यानी कांग्रेस में केवल गांधी परिवार का ही चलना है,,,,,, किसको प्रदेश प्रभारी बनाना है किसको जिम्मेदारी देना है आज भी गांधी परिवार के नेतृत्व में है,, लेकिन कांग्रेस पार्टी हारती है तो प्रदेश नेतृत्व को ठीकरा रहा फोड़ देता है,,, और जीतती है तो श्रेय गांधी परिवार को मिलता है,,, पार्टी कोई भी हो केंद्रीय नेतृत्व में तो यह अन्य पार्टी में भी यही होता है,,,,अब दल बदल कानून की बात करते हैं,, जब दिल्ली में स्वर्गीय राजीव गांधी की सरकार थी संविधान का 52,वां संविधान संशोधन विधायक 1985,,,, उससे पहले कई सरकारे के विधायकों के दल परिवर्तन के कारण, राजनीतिक भ्रष्टाचार एवं लोकतंत्र में अस्थिरता सामने आई,,, जिसमें दल बदल कानून बना करके दूर किया गया लेकिन उस अनुच्छेद में अभी भी छेद है यानी कुछ कमियां अभी भी बाकी है,,,, अनुच्छेद में एक और संशोधन 2003 में वाजपेई सरकार के समय हुआ जिसमें एक तिहाई सदस्य दूसरे दल परिवर्तन कर देते थे तो यह नियम लागू नहीं होता था छोटे दल काम सीटें जीतते थे और दूसरे दल में चले जाते थे तो इससे राजनीतिक अस्थिरता होती थी उसे दूर किया गया,,,एक तिहाई सदस्य वाला नियम हटा दिया गया यानी कोई भी विधायक सांसद दाल परिवर्तन करता है तो उनकी विधानसभा या लोकसभा की सदस्यता समाप्त किया जा सकता है,,दल बदल कानून में भी यही है,, लेकिन इसमें कमियां यही है,, जो विधायक महत्वपूर्ण बिल के समय या अन्य कोई राजनीतिक स्वार्थ के कारण दल परिवर्तन है,, उनकी सदस्यता चली जाएगी और पुन: वही सीट में मतदान होंगे,,, दल बदल कानून में और संशोधन करने की जरूरत है,, दल बदल कानून को ऐसा और मजबूत बनाना चाहिए जो पार्टी के फॉर्म B, ले करके किसी दल से चुनाव लड़ते हैं फिर जनता के मतदान से सदस्य बन जाते हैं उसके बाद सदस्य राजनीतिक स्वार्थ के कारण दूसरे दल में चले जाते हैं, इसमें पार्टी को दबाव बनाते हैं बल्कि दल बदल कानून को ऐसा करना चाहिए जो राजनीतिक पार्टी में चुनाव लड़े वह विधायक या सांसद अन्य दल में जाए ही ना,,, इसे आने वाला समय में कई राजनीतिक अस्थिरता राजनीतिक भ्रष्टाचार खरीद_फरोत को समाप्त किया जा सकता है,, कम मार्जिन से सरकार बनाने वाले पार्टियों को विधायकों का ज्यादा दबाव भी ना झेलना भी यह सब समाप्त हो सकता है,,, जिस दल से चुनाव लड़े उस पर कर्तव्यनिष्ट रहे,, लोकतंत्र में जनादेश से परिवर्तन करने वाले नेताओं को तुरंत चुनाव लड़ने पर भी रोक लगाने का प्रावधान भी दल बदल कानून में करने की जरूरत है,। कोई भी विधायक सांसद चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग को अपने दल का फॉर्म B देता है जनता द्वारा चुने जाने के बाद दल परिवर्तन फार्म बी के हिसाब से जिसमें चुनाव लड़ा हो जिस पार्टी में परिवर्तन करे ही ना,,, इससे लोकतंत्र में राजनीतिक अस्थिरता खत्म हो जाएगी।, जनता द्वारा चुने गए जनादेश का अपमान नहीं होगा। राजनीतिक भ्रष्टाचार खरीद समाप्त हो जाएगी,,, अप्रत्यक्ष प्रणाली में मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री चुनने में किसी भी प्रकार का सौदेबाजी नहीं होगा, लोकतंत्र पैसा तंत्र बनने से रूक जाएगा।