चावल कोटा आवंटित करने में और खपत करने में कहां पर होता है झोल_झाल!

श्री गुरु ग्लोबल न्यूज:-“”””हमें तो इसका विवरण लिखने से पहले एक साउथ इंडियन फिल्म का डायलॉग याद आ गया कानून का हाथ कितना भी लंबा हो सिस्टम तक पहुंच ही,नहीं सकते,,,,! क्योंकि हॉस्टल में सब प्रक्रिया सिस्टम से है,,,, दस्तावेज सब सिस्टम से रजिस्टर्ड है,,, चावल को उठाने में भी सिस्टम का उपयोग है,,,, इसका पॉइंट कहां पर है सिस्टम को कभी समझ में नहीं आएगा,,,,, क्योंकि काम करते-करते सब अनुभव हो जाता है सिस्टम में संविधान,अनुच्छेद में छेद कहां है,,,??मामला यह है कि ग्राम पीपरछेड़ी विकासखंड छुरा जिला गरियाबंद, श्री गुरु ग्लोबल न्यूज को सूचना मिला यहां की हॉस्टल अधीक्षक धमतरी जिले से गाड़ी आया था उसे गांव वालों ने पकड़ा,, वहां की अधीक्षक बोली चावल पॉलिश करने के लिए ले जा रहे हैं,,, तो सवाल उठता है पॉलिश तो पीपरछड़ी में भी हो सकता है वहां ट्रैक्टर इंजन चलने वाला हालर मशीन है जो चावल पॉलिश करता है,,, और यहीं पर सवाल उठता है चावल पॉलिश करने का पैसा सरकार और शासन देती है कि मैडम अपने जेब से भर्ती है,,,, फिर श्री गुरु ग्लोबल न्यूज ने वहां की अधीक्षक मैडम से पूछा चावल गाड़ी से कहां ले जा रही थी इस संबंध में हमको सूचना मिला है तो उन्होंने कहा चावल सब सुरक्षित है,, सब सिस्टम में है जितना आवंटित होता है उतना बच्चों को दिया जाता है,, जो बचता है उसे स्टॉक में रखा जाता है। सभी दस्तावेज खपत के हिसाब से सब हिसाब से रजिस्टर में अंकित किया जाता है।,,,, फिर पता किये यहां 60 बच्चे हैं,, एक बच्चे के लिए दो टाइम खाना 250 ग्राम आता है,,, टोटल 9 कुंटल आवंटित होता है,,,,, शासन प्रत्येक बच्चे के लिए 250 ग्राम आवंटित करती है लेकिन हर बच्चे 250 ग्राम नहीं खाते हैं,, कोई काम खाते हैं कोई अधिक खाता है,,, लेकिन जो चावल बचता है उसका क्या होता है या फिर इतने साल तक सर्विस कर रही है जितना कोटा आपको आवश्यकता है जितना खपत होता है उतना ही आवंटित करवाना चाहिए,,।। और सिस्टम में झोलझाल यहीं पर है शासन आवंटित कितना करती है और अधीक्षक कितना खर्च करती है।। यानी बच्चे कितना खाते हैं। एवं जनता को भी समझना चाहिए सिस्टम में कहां कमी है,, और इसे दूर कैसे कैसे किया जा सकता है और इसको दूर करने के लिए भी श्री गुरु ग्लोबल न्यूज ने कई सुझाव समाचार पहले भी न्यूज़ चला चुके हैं।।

कहा गया है कि दाने-दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम, लेकिन सरकारी सिस्टम में चावल प्राइवेट सेक्टर से, सहकारी समिति एवं अन्य माध्यम से हितग्राही तक पहुंचता है, लेकिन चावल में ऐसा कोई चिन्ह अंकित नहीं है कि सरकारी चावल है की प्राइवेट चावल है क्योंकि सरकारी से फिर वही चावल प्राइवेट सेक्टर में बड़े दाम में बिक जाता है,,, हितग्राही को भी देखें तो कई उपभोक्ता कोटा से चावल खरीद करके दुकान में पतला चावल लेकर के पलटी कर देते हैं।,,, सरकार अधिक दामों में चावल को प्राइवेट सेक्टर से खरीद करके हितग्राही तक पहुंचाती है,,, इसमें शासन और प्रशासन के सिस्टम में ही कमजोरी है क्योंकि सरकारी सिस्टम वाले चावल का ऐसा कोई चिंतन अंकित कलर कोटेड नहीं किया गया है जिसे खाद्य अधिकारी दुकानों में पकड़ सके,, आप पकड़ भी नहीं पाएंगे कि यह चावल सरकारी सिस्टम से प्राइवेट सेक्टर में आया है,,, इसमें श्री गुरु ग्लोबल न्यूज पहले भी न्यूज़ चल चुका है खाद्य सिस्टम में उचित दाम में मिलने वाले चावल को ऐसा चिन्हाअंकित कुछ चावल कलर कोटेड करना चाहिए जो मार्केट में ना बिके के खाद्य विभाग कमिश्नर अधिकारी आसानी से पकड़ सके चिन्हाअंकित पहले से हो जाए।,,, लेकिन ऐसा नहीं है कि शासन के पास दिमाग नहीं है ऐसा लगता है कि सब सिस्टम को ऐसा ही बनाया गया है क्योंकि सिस्टम सबको चलना है। और झोलझाल करना है और जनता को यह चीज कभी समझ में नहीं आएगी।। लेकिन श्री गुरु ग्लोबल न्यूज हमेशा लोकतंत्र एवं संविधान का सम्मान करती है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है इसका स्तंभ हमेशा मजबूत रखना चाहती है।।

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