लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया है, लेकिन लोकतंत्र में चुनाव आयोग को निष्पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी चुनाव आयोग की लापरवाही बिल्कुल दिखाई देती है, इनका आज भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बिल्कुल सूझबूझ की कमी दिखाई देती है हर क्षेत्र में बिल्कुल काबिल नहीं है, चुनाव आयोग पर राजनीतिक पार्टियों आरोप तो लगती ही है पर बेअसर हो जाती है, आचार संहिता से पहले जो भी पर ऐसा कई क्षेत्र में नहीं हो पता, इसमें बिल्कुल कमियां दिखाई देती है, इसे प्रशासनिक लापरवाही भी कह सकते हैं, इस चुनाव आयोग का मुख्य चुनाव आयुक्त हो जो होते हैं वह केंद्र सरकार केंद्र से होते हैं और केंद्र में के हिसाब से ही उनके ऊपर आरोप लगाते हैं, फिलहाल छत्तीसगढ़ में चुनाव है और केंद्र में बीजेपी की सरकार है और राज्य में कांग्रेस की सरकार है, और जो प्रत्याशी है उनके दीवाल लेखन पर लीपापोती नहीं किया गया और टाइमलाइन के सहित है, इसमें चुनाव आयोग की लापरवाही बिल्कुल दिखाई दे रही है उसमें लिपापोती क्यों नहीं किया गया,?,, लीपा पोती करने का ठेका किसको देते हैं, अगर पंचायत के स्तर पर देते होंगे तो क्यों नहीं हुआ है, अगर नगर पंचायत पर देते हैं तो क्यों नहीं होता है,? क्या केंद्रीय प्रत्याशी के लिए विशेष रियायत है, जो क्षेत्रीय लोक पार्टी है उसके लिए कोई नियम कानून नहीं है? जो राष्ट्रीय पार्टी है इनके दीवार लेखन में क्यों पोताई नहीं हुआ है जबकि प्रचार का लागू अभी चालू नहीं हुआ है,, नॉमिनेशन प्रक्रिया होने के बाद प्रचार करने के लिए समय दिया गया जाता है चुनाव आयोग के द्वारा,,,, तो यह राजिम विधानसभा में क्यों हो रहा है,,, इसमें स्पष्ट होता है कि चुनाव आयोग के द्वारा चूना लगाने में लापरवाही हुई है अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आचार संहिता के उल्लंघन में क्या चालू चुनाव आयोग के ऊपर कार्रवाई होगी, क्या चुनाव आयोग के ऊपर कोई है,,, अगर चुनाव आयोग के ऊपर कोई नहीं है तो ऐसा क्यों हो रहा है,! अब सवाल उठता है कि चुनाव आयोग के ऊपर कौन कार्रवाई कर सकता है,। मतलब नियम सब आम राजनीतिक पार्टियों के लिए है बाकी किसी के लिए नहीं मतलब सब चुनाव तक ही है बाकी कोई मतलब नहीं,! संवैधानिक प्रक्रिया लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उलझन क्यों हो रहा है, इसमें अभी तक कोई पारदर्शिका क्यों नहीं है,!