पॉलीटिकल विशेषज्ञGK :-भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह, की साख छत्तीसगढ़ चुनाव पर दाव पर लग गई है,, इससे पहले अमित शाह झारखंड चुनाव में छत्तीसगढ़ चुनाव की तरह तैयारी किए थे वहां भी पूरा चुनाव का मॉनिटरिंग किए थे फिर भी वहां उनको भारतीय जनता पार्टी को करारी हार मिली, बीजेपी का विजय रथ कर्नाटक चुनाव में भी करारी हार से रुक गया है,, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के टिकट बंटवारे में, भारी झंझट दिखाई दे रही है, इससे पहले 21 प्रत्याशियों के सूची में नाम आने से कई सीटों पर, उनके पुराने कार्यकर्ता, पार्टी संगठन पर विरोध जारी कर चुके हैं,, उदाहरण के लिए राजिम विधानसभा,, पहले कांग्रेस से उसके बाद जनता कांग्रेस में आए रोहित साहू को यहां से टिकट दिया गया है,,, इस पर कई उनके नेता संगठन पर विरोध जारी कर चुके हैं,, लेकिन उनका विरोध सफलता नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि उनका जो विरोध है जायज नहीं दिखाई दे रहा है क्योंकिअगर राजनीति को दृष्टि से देखें,, क्योंकि 2013 में भारतीय जनता पार्टी टिकट संतोष उपाध्याय को दिया गया था वह भी कांग्रेस से भाजपा में आए थे उससे पहले निर्दलीय चुनाव लड़े थे, उस समय उनका कोई विरोध नहीं हुआ,, फिर 2018 में उनको पुन: प्रत्याशी बनाया गया यानी नए कार्यकर्ता को मौका नहीं दिया गया उसे समय भी पार्टी के पुराने नेता नए कार्यकर्ता को मौका के लिए ज्यादा संगठन में बल बिल्कुल दिखाई नहीं दिया,,, फिर भारतीय जनता पार्टी के दूसरी सूची मीडिया में जारी होने के बाद, कई सीटों पर भारी विरोध प्रदर्शन के बाद, उनके जमीन से जुड़े हुए कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद यह कहना पड़ा कि यह भारतीय जनता पार्टी का लिस्ट नहीं है मीडिया के द्वारा दिया गया सूची है इसमें पार्टी का किसी भी प्रकार का कोई सूची जारी नहीं हुआ है,,कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने ऐसा सूची खुद जारी किया है ताकि पता चल सके की पार्टी का स्थिति क्या है, कौन विरोध कर सकता है कहां-कहां उम्मीदवारों पर आपत्ति हो सकती है, खाने का मतलब भारतीय जनता पार्टी बिरोकेट से इस्तीफा देकर के यानी सरकारी नौकरी नौकरशाही से इस्तीफा देकर के राजनीति में आए उनका टिकट दे रहे हैं,, मतलब पार्टी के लिए जमीन से जुड़े हुए नेता जो संगठन के लिए काम किए हैं उनका कोई अस्तित्व नहीं है, अगर ब्यूरोक्रेसी को टिकट देंगे तो राजनीतिक में सेवा भाव से सेवा करने से उनका चुनाव लड़ने का मौका क्या नहीं मिलेगा?,, ऐसे को टिकट देने से क्या भारतीय जनता पार्टी,, राजनीति में क्या सफलता मिल सकती है या तो जनता तय करेगी? दूसरा पक्ष यह है कोई फिल्मी कलाकार को टिकट देंगे तो क्या जमीन से जुड़े हुए कार्यकर्ता दरी उठाने वाले कार्यकर्ता वह क्या दरी ही उठाते रहेंगे, पार्टी का झंडा उठाते रहेंगे और आप फिल्मी कलाकार सुपरस्टार को टिकट देंगे,, ऐसा ही टिकट नाम अब विधानसभा से धर्मगुरु खुशवंत साहिब के बेटे का भी यही स्थिति सामने आ रही है, उनको पैराशूट प्रत्याशी कहा जा रहा है,, जो क्षेत्र में काम किए हैं उनका पार्टी कोई तवज्जो नहीं दे रही है,,, ऐसा ही सूची में कई ऐसे नाम है जिनको कैबिनेट मंत्री जिनका 2018 में भाजपा के हार का प्रमुख जिम्मेदार माना जा रहा था उनको फिर से टिकट में नाम अफवाह वाले सूची में देखें तो वह उसे भी पार्टी के जो कार्यकर्ता नेता है पार्टी संगठन के खिलाफ काफी आक्रोश दिखाई दे रहे हैं,, भारतीय जनता पार्टी के कि प्रत्याशियों के नाम सूची घोषित होने के बाद जिस प्रकार स्थिति दिखाई दे रही है दूध का जला छाछ को भी फूंक कर पीता है वैसी अब दिखाई दे रही है टिकट वितरण में भारतीय जनता पार्टी अब काफी मंथन करने लग गई है,।
पुरानी पेंशन योजना से फिर से बहाली को लेकर के वर्तमान में केंद्र सरकार से कर्मचारी बिल्कुल नाराज है,, एवं महंगाई बेरोजगारी, एवं जातीय जनगणना रिजर्वेशन काफी मुद्दा बन रहा है एवं विपक्ष का इंडिया गठबंधन से बीजेपी फिलहाल उनका चुनाव में समीकरण बिगड़ना का बिल्कुल दर दिखाई दे रहा है,, संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करने का बहुत दुरुपयोग करने का आप फिलहाल भारतीय जनता पार्टी पर लग रही है, विपक्ष सीधे लोकतंत्र को खतरे एवं संविधान को खतरे में बता रही है।
लोकतंत्र में जनता जनार्दन ही महत्वपूर्ण होती है लेकिन कई राजनीतिक पार्टियों सत्ता में आने के बाद उनके फैसले पर भी जनता का समर्थन मिल रहा है ऐसा लगता है, जब चुनाव में हार होती है तो उनको भी हार के कारणो का भी समीक्षा करना पड़ता है,,, उनको हारने के बाद हार का आत्ममंथन करना पड़ता है,।