संघ हो जाएगा ऐसे ही भंग जब कांग्रेस में आएगी अनुशासन?

पॉलीटिकल एनालिसिस गोल्डन कुमार यादव:-(कांग्रेस की क्या पहचान त्याग तपस्या और बलिदान,, यह केवल लिखने में ही शोभा देता है पढ़ने में ही शोभा देता है कांग्रेस पार्टी में अब तक 75 साल के इतिहास में बिल्कुल लागू नहीं हुआ है,) पहले कांग्रेस के हाई कमान है उनसे यही guru ग्लोबल न्यूज कहता है पहले अंतरात्मा से देखिए जो2023 असेंबली इलेक्शन, में, दावेदारी कर रहे हैं उनमें कितने है त्याग और बलिदान देने पर सामने है,,,उदयपुर शिविर एवं छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन एवं उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में कांग्रेस पार्टी चुनावी हार अब तक मिली हुई कारण एवं समीक्षा बैठक में कई फैसला लिए गए,,,,, लेकिन अब चुनाव को देखते हुए उन नियमों को लागू करने में कांग्रेस पार्टी के पसीने छूटने लग गए हैं,,, छत्तीसगढ़ नहीं हम सोशल मीडिया और अन्य माध्यम से देख रहे हैं राजस्थान और मध्य प्रदेश में कुर्सी एवं सत्ता स्वार्थ है के लिए पूरा खिंचातान की स्थिति है,,, पार्टी खेमेबाजी को नैतिक रूप से तो दूर करने की कोशिश की पर अंदरुनी रूप से दूर करना फिलहाल मुश्किल दिखाई दे रहा है,,, आप किसी भी विधानसभा क्षेत्र से हो खुद देखें उदयपुर शिविर में फैसला हुआ था चिंतन शिविर में कांग्रेस की नई पीढ़ी को मौका देना है, महिलाओं को मौका देना है,,,, यानी जो पार्टी जिनको मौका दे चुकी है कई बार विधायक सांसद बन चुके हैं अन्य पदों पर रह चुके हैं महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर रह चुके हैं आने वाला पीढ़ी के लिए यानी न्यू कांग्रेस के लिए त्याग एवं बलिदान जरूर दें,,,, लेकिन किसी भी क्षेत्र में ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है जो कई वर्षों से विधायक है आने वाला पीढ़ी के लिए अपना कुर्सी छोड़ने को बिल्कुल तैयार नहीं,,, दावेदारी कर भी रहे हैं और दीवारों में नाम पेंटिंग के जरिए लिखवा चुके हैं यानी सत्ता और मोह बिल्कुल छोड़ने को बिल्कुल राजी नहीं,,, पार्टी के वरिष्ठ नेता रविंद्र चौबे का बयान आया छत्तीसगढ़ में नए लोगों को मौका दिया जाएगा जिन सीटों पर 2018 में हार हुई थी उन सीटों पर नए उम्मीदवार पार्टी उतरेगी,, लेकिन जो 2018 में चुनाव लड़ चुके हैं और पिछले 4 सालों से जो तैयारी कर रहे हैं वह पार्टी पर बिल्कुल हावी होने लगे,, तो फिर पीसीसी प्रभारी कुमारी शैलजा तुरंत बयान देना पड़ा की पार्टी ने ऐसा डिसीजन नहीं लिया है यह व्यक्तिगत सोच है पार्टी जिताऊ कैंडिडेट को टिकट बिल्कुल देगी,,,, यानी इतिहास की तरह अन्य पार्टियों की तरह कांग्रेस में अनुशासन लाना,, नामुमकिन सा लग रहा है,,,, इसके कई कारण है पार्टी संगठन और जो पावर में है विधायक में है संसद में है संगठन और शासन में बिल्कुल तालमेल का अभाव,,,,, पार्टी ठोस कदम उठाने में झिझक रही है,, खास तौर पर वह जो सिटिंग विधायक है उनका टिकट काटने में भी कतरा रही है बल्कि सर्वे रिपोर्ट में कई विधायक फेल है,,,, कांग्रेस पार्टी को ऐसे को टिकट देने में नुकसान हो सकती है, और कांग्रेस पार्टी अभी देख रही है इनका टिकट भी नहीं देंगे तो भी नुकसान हो जाएंगे,, मतलब कांग्रेस में बेहतर संगठन में प्रशासन का अभाव है,, कांग्रेस में ऐसे व्यक्तित्व की दो दृष्टि वाले व्यक्तित्व की कमी दिखाई दे रही है जो महत्वपूर्ण जगह पार्टी के नेताओं को समझौता किया जा सके,,,,””कहीं फिर ऐसा ना हो जाए पूर्व की तरह जो निचले स्तर के कार्यकर्ता है वही त्याग तपस्या करते रहे पार्टी के लिए,, पार्टी का सेवा करते रहे,, अगर कांग्रेस की नई पीढ़ी को तैयार करना है तो जो निचले स्तर के जो कार्यकर्ता है कई सालों से फील्ड में कम कर रहे हैं उनको मौका अगर नहीं मिला तो यह चुनाव में कांग्रेस पार्टी को नुकसान भी हो सकती है””””””””जिनके जगह पर नया पीढ़ी को मौका मिलना है उनको जो पुराने नेता है उनको जितवाने में मदद भी करनी होगी,,,,,हाथ से हाथ मिलेगा,,,,बढ़ेगा कदम,,,भारत जुड़ेगा जुड़ेगा वतन,,!!!

कांग्रेस का आजादी के बाद वाला चुनाव में सहमति में सरदार पटेल अधिक मत पाए थे पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों सत्ता सौंप दिया गया,, कई इतिहासकार तो कहते हैं सत्ता के स्वार्थ के लिए ही भारत दो टुकड़ा हुआ,, फिर लाल बहादुर शास्त्री, पूर्व प्रधानमंत्री,, विदेश में आकस्मिक मृत्यु आज भी समझ बाहर है,, फिर इंदिरा गांधी के पास देश की सट्टा का केंद्र आया आज भी कांग्रेस गांधी परिवार के चक्रव्यूह में फंसी हुई है,,, हालांकि राहुल गांधी भारत छोड़ो यात्रा में काफी संघर्ष किये,,, लेकिन कांग्रेस की फिलहाल स्थिति नहीं दिखाई दे रही है जो अपने बलबूते केंद्र की सत्ता में वापस आ सके,,, यह तो खैर बड़े स्तर पर है छोटे-छोटे स्तर मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों के विधायकों के कई कहानी अलग-अलग क्षेत्र में इतिहास में जरूर मिल जाएंगे,,,,

कांग्रेस को अब काबिल पॉलिटिशियन की आवश्यकता है,,,

फिलहाल नहीं है,,,,

इसीलिए तो कहते हैं जिनको सर में बाल नहीं होता उन्हीं को लोग चाणक्य समझते हैं,,,

लेकिन हमारे सर पर तो अभी बहुत बाल है,,,,,,

guruglobal

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