श्री गुरु ग्लोबल न्यूज छुरा:-कहते हैं कि पैसा हाथ का मैल है जिंदगी रहेगी तो कमा लेंगे,,, और दूसरा पक्ष है यह भी कहते हैं स्वास्थ्य ही धन है,, और लोकतंत्र है यह 5 साल में सरकार बदलती है,, यहां छै -छै महीने में थानेदार,, 1 साल में एसडीएम तहसीलदार कलेक्टर भी बदल जाते हैं,, 5 साल में विधायक और 5 साल में कभी-कभी सरकार भी बदल जाता है,, स्वास्थ्य के जरिए से देखें तो यहां के प्रजा का हालत खराब है,, अभी तो खैर हड़ताल है,, यह अस्पताल प्राइवेट अस्पताल में रिफर करने वाला अस्पताल सरकारी अस्पताल बन चुका है ऐसा कई न्यूज़ पेपर में आप देखे होंगे,,, छुरा गरियाबंद जिले का सबसे टॉप शहर है यानी जिला गरियाबंद से भी टॉप का यहां मार्केट है, स्वास्थ्य कर्मियों के हड़ताल के समय एक 19 वर्षीय आदिवासी युवक की सर्प काटने से मौत की खबरें चल रही है, डॉक्टर का कहना है कि अस्पताल पहुंचने से पहले उनकी मौत हो चुकी थी,, सवाल यह उठता है कि आपका अस्पताल में बेहतर ट्रीटमेंट का दवाई है या नहीं या दवाई व्यवस्था नहीं है तो इस पर संबंधित बड़े अधिकारी पर चर्चा किये या नहीं,,, आपके सरकारी अस्पताल में क्या-क्या चीजों की आवश्यकता है कभी शासन और प्रशासन से डिमांड किए हैं या नहीं, अगर डिमांड किए हैं, अगर डिमांड किए हैं बेहतर सुविधा मिल नहीं रहा है तो प्रजा ही जाने की इसमें दोषी कौन है? प्रजा क्या करेंगे अपना राजा बदलेंगे,, तो सवाल उटता है यहां का राजा कौन है? प्रिंट मीडिया में ऐसा छपा है कि डॉक्टर प्रजापति का यहां से ट्रांसफर हो गया लेकिन फिर पुनः वापस लौट गए,, तो उत्तर यही है उनको वापस लौटने वाला यहां का राजा है,, और यहां की प्रजा उसे राजा को कभी बदल ही नहीं सकती यानी सिस्टम बदल ही नहीं सकता,, और इसमें दोषी कौन है,, इसमें आदिवासी युवक की जो मौत हुई है दूसरी का भी सकते हैं आदिवासी समाज भी है, उनके समाज के नेता भी हैं, जनप्रतिनिधि भी है, साथ में मीडिया भी है, जो कभी इन बेहतर एवं जागरूकता चीजों पर फोकस नहीं करते एवं मुद्दा नहीं उठाते बातचीत नहीं करते शिकायत नहीं करते जो कमियां है उसे उजागर नहीं करते, यहां बड़े-बड़े प्राइवेट अस्पताल खुल गए कई अस्पताल चल रहे हैं और सरकारी अस्पताल का हालत खराब है, सरकारी अस्पताल में बेहतर सुविधा हो इसके लिए काम क्यों नहीं किया गया, दोषी यहां के प्रजा ही है जो कभी ऐसे मुद्दों को फोकस नहीं करते ऐसे मुद्दों को स्थानीय नेताओं के बीच नहीं रखते, क्योंकि इसके साथ बिताता है उसी को एहसास होता है, अस्पताल क्या होता है इलाज क्या होता है, और जिसको साथ नहीं बितता,, ऐसी चीजों पर कभी ध्यान ही नहीं देते उनको भी मालूम होता है हमारे साथ थोड़ी हो रहा है जिसके साथ हो रहा है वही जाने हम इसमें क्या कर सकते हैं,। जिसके पास बहुत पैसा है वह तो प्राइवेट इलाज करवा सकता है और जिसके पास पैसा नहीं है उनको मौत के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है, हमने कई लोगों को देखा है कोई पॉइजन लेकर के जहर पीने वाला सरकारी अस्पताल में गया है, तो कई लोग सलाह देते हैं यहां यह तो नहीं बच पाएगा अगर बजाना है तो आपके पास पैसा भी आओ पैसा जुगाड़ करो प्राइवेट में ले जाओ इसका जिंदगी तभी बच पाएगा, नहीं तो पूरा कागजी सिस्टम में उलझ जाओगे उल्टा फस जाओगे, डॉक्टर कह देंगे यह बहुत देर से लाया गया, नहीं बचा पाए हम क्या कर सकते हैं, यहां के हम मलिक थोड़ी है यहां के, नाम भले ही हमारा चल रहा है यहां का राजा कोई और है.।
