पॉलीटिकल एनालिसिस गोल्डन कुमार,:- राजिम विधानसभा से बीजेपी के टिकट घोषित होने से कुर्ता पजामा पहनने वाले नेताओं को एक चीज का शिक्षा जरूर मिलता है,, टिकट के लिए दीवाल में नाम लिखवाना बैनर पोस्टर लगाना यह सब फिजूलखर्ची है, टिकट के लिए पब्लिक में स्टार होना जरूरी है,, और टिकट सुपरस्टार को ही मिलता है, टिकट पाने के लिए जमीन स्तर पर पकड़ होना जरूरी है, टिकट उसी को मिलता है जो जनता के दिल में नाम पहले से ही लिखवा चुका है, राजिम विधानसभा में हर क्षेत्र का दौरा किए हमने यही देखा कि जितना खर्चा टिकट पाने के लिए कैंडिडेट लोग किए उतना में आसानी से चुनाव खर्चा हो सकता है पूरा चुनाव निपट सकता था,, और इसमें जितने भी दावेदार थे सभी कोई खर्चा उठाएं,, अभी भी दीवाल देखने के बाद नाम देखने के बाद उनमें कैसा एहसास होता होगा यह जरूर मनोवैज्ञानिक बात है, जो टिकट तय करते हैं सर्वे और जनता के हिसाब से कुछ रुझान मिलने और संभावना के हिसाब से तय होता है, किस उम्मीदवार पर समीकरण अच्छा से बैठ सकता है जो उम्मीदवार दावेदारी कर रहे हैं उनका छवि कैसा है,? यह चीज देखा जाता है, संबंधित दावेदार में काम करने की क्षमता कैसा है पूर्व में काम किए हुए को आशीर्वाद टिकट के तौर पर भी मिलता है,, पहले के दौर में और आज के दौर में चुनावी खर्चा लगातार बढ़ रहा है, अधिकतर खर्चा बैनर पोस्टर एवं मीडिया में कैंडिडेट को उठाना पड़ता है, इसलिए हमको एक डायलॉग याद आ गया,, दाने दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम,,,, दीवारों में नाम लिखवाना बैनर पोस्टर लगाना क्या जरूरी है टिकट पाने वाले का नाम?????,, राजनीतिक पार्टियां ऐसा कभी नहीं चाहती है जो दावेदार होते हैं अपने को ज्यादा मजबूत साबित करने के लिए ऐसा करते हैं ऐसा सभी जगह देखने को मिलता है,, कोई भी पार्टी अपने पार्टी नेताओं को निराश नहीं करना चाहती बल्कि पार्टी के नेता अपने आप को अधिक महत्वाकांक्षी साबित करने की वजह से ऐसा खुद करते हैं,, टिकट किसी एक को मिलना रहता है और पार्टी सोच समझकर सभी नेताओं को अपनी-अपनी जगह में मौका देने की बात कह कर टिकट की घोषणा करती है,!
टिकट पाने का पॉलीटिकल पैरामीटर कैसा होना चाहिए?
