श्री गुरु ग्लोबल न्यूज, रायपुर,,:-वेतन विसंगति को मांग को लेकर छत्तीसगढ़ के सहायक शिक्षक फिर आंदोलन और हड़ताल पर हैं,, वेतन विसंगति आज से नहीं इतिहास से है राजा महाराजा,मुगल काल एवं अंग्रेज, यानी उस समय भी जितना पद उतना दाम छोटा पद कम दाम, जिसे हम बोल चाल की भाषा में पग़ार या तनख्वा भी कह सकते हैं, और आजादी के बाद भी यही है और इसे दूर आज तक किया ही नहीं जा सका और इसके लिए दूर करने के लिए बेहतर पॉलिसी अब तक आजादी के 75 साल बाद भी नहीं बना है,, आजादी के बाद भी वही स्थिति है मूल्यांकन पद के हिसाब से हुआ है ना कि काम के हिसाब से,, और जो लोग हड़ताल एवं मांग करते हैं काम के हिसाब से मांग करते हैं क्योंकि डिग्री और क्वालिफिकेशन तो तुलना नहीं कर सकते क्योंकि सब बराबरी कर चुके हैं, सरकारी नौकरी की इतनी मारी मारा है, पीएचडी किया हुआ आदमी भी चपरासी के लिए सरकारी चपरासी के लिए भी पांचवी का अंक सूची डाल करके नौकरी की कोशिश करता है, क्योंकि नियमित सरकारी नौकरी के अलावा सबसे श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इनमें काफी संख्या में अच्छा तनख्वाह भी मिलता है, फिर भी संतुष्टि नहीं, पहले कहते थे उत्तम खेती मध्यम व्यापार नौकरी चाकरी भीख निधान,,, लेकिन आज की स्थिति में नौकरी सबसे उत्तम हो गया है खेती कोई करना नहीं चाहता क्योंकि सरकार की पॉलिसी खेती को बेहतर बनाने के लिए नहीं किया गया नौकरी पर ज्यादा महत्व दिया गया और महंगाई और किसी लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और आमदनी नौकरी करने वाला से कम हो रहा है,, यानी जितनी आदमी नौकरी में है उससे कहीं ज्यादा आबादी भूमिहीन एवं किसान एवं मजदूर वर्ग भी है,, उनका एक दिन का रोगी और सरकारी कर्मचारी का 1 दिन का रोजी तुलना कर सकते हैं बहुत अंतर है, जो डिमांड कर रहे हैं सरकारी कर्मचारी अपने से ऊंचा पद पर साथ काम कर रहे वेतन विसंगति की मांग कर रहे हैं,,, यह भी सच्चाई है वेतन विसंगति तो है लेकिन काम के अपेक्षा कई ऐसा विभाग है जिनको काम अधिक है और उनका मेहताना कम है,,,, उदाहरण के लिए स्वास्थ्य एवं पुलिस विभाग भी देख सकते हैं, क्योंकि आपातकालीन सेवाएं के अन्य विभाग भी देख सकते हैं,,, सरकार कर्ज में चल रही है लेकिन सवाल उठता है सरकार कर्ज में क्यों चल रही है,, जो शिक्षित है पढ़े लिखे हैं समझदार हैं उनको मालूम है सरकार कर्ज में चलाया जा रहा है और जो सरकार चला रहे हैं वह प्रॉफिट में चल रहे हैं,, और या किसी भी शासन में सत्ता पलटने में कोई बदलाव नहीं होता है,, बस चेहरा बस बदलते हैं,, क्योंकि सरकारी ट्रेजरी में जितना पैसा जाना चाहिए वह नहीं जाता जो पैसा बाहर से जो सेवा कर रहे हैं उनके जेब में जाता है वही पैसा को सीधे ट्रेजरी में अगर डालना शुरू कर देंगे,, वेतन विसंगति दूर भी हो सकता है, कोई बड़ी बात नहीं है,, पर इसको दूर करने के लिए राजा हरिश्चंद्र जैसा आदमी होना चाहिए जो बहुत कम होते हैं और पद में आने के बाद खुद बिगड़ जाते हैं,, सब अपने अपने स्वार्थ के लिए काम करना शुरू कर देते हैं,,
इलेक्शन नजदीक आते ही सरकारी कर्मचारी प्रत्येक सरकार से मांगते हैं भगते भूत का का से कम लंगोटी?
