वही अफ़सर फसते हैं जो मौखिक में अपना कलाम फंसा लेते हैं, #शिक्षक तबादला

वही कर्मचारी अधिकारी फसते हैं जो मौखिक आदेश में अपना कलम फंसा लेते हैं,*#छत्तीसगढ़ #शिक्षक #तबादला #घोटाला,चुनाव से ठीक पहले छत्तीसगढ़ के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉक्टर प्रेमसाय टेकाम, बदल दिए गए फिर उनका बयान आया इस्तीफा दिया नहीं जाता लिया जाता है, लेकिन सरकारी स्कूलों की किताबों में पूर्व मंत्री का फोटो छप चुका है और वह पुस्तक चल रही है, बच्चों के हिसाब से जिनको मालूम नहीं है उनके हिसाब से शिक्षा मंत्री वही है, शिक्षा मंत्री का कार्यभार संभाले कैबिनेट मंत्री रविंद्र चौबे का बयान आया है, शिक्षकों के तबादले में आर्थिक लेनदेन दूर से लग रहा है, जो जिम्मेदार हैं उन पर निलंबित की कार्यवाही एवं f.i.r. तक दर्ज किए जा सकती हैं,, चाहे कोई सा विभाग हो तबादला पोस्टिंग पैसा लेनदेन यह हर सेक्टर क्षेत्र में सामने आता है, बहुत बड़े मामले में ही यह मीडिया एवं जनता के बीच सामने आ जाता है, छोटे-मोटे इक्का-दुक्का ट्रांसफर से यह मामला सामने नहीं आता, कई नौकरी करने वाले अपने मन में मुताबिक जगह ट्रांसफर करने के लिए जिम्मेदार अफसर को बहुत रुपया देने तो तैयार हो जाते हैं, क्योंकि अब तक देखें तो सरकार के पास जिम्मेदार जिनको ट्रांसफर करने का अधिकार मिला है नाम के मुताबिक ट्रांसफर होता है, बिल्कुल इस पॉलिसी में लेनदेन बिल्कुल, हो सकता है, कई छोटे-छोटे कर्मचारी छोटे अधिकारी अपने बड़े अधिकारी के दबाव में शोषण भी होता है, क्योंकि बेहतर ट्रांसफर पॉलिसी नहीं है, जिसको जहां मन किया वहां ट्रांसफर कर दिया, ट्रांसफर पॉलिसी लकी ड्रॉ सिस्टम से होना चाहिए नाम और जगह के नाम के हिसाब से आदमी जिम्मेदार कर्मचारियों का चयन प्रक्रिया होना चाहिए तभी इस चीज में सुधार हो सकती है लेनदेन बिल्कुल इस सिस्टम से हट सकती है लेकिन अभी तक किसी भी राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार ने यह नीति नहीं अपनाएं, मामला सामने आने पर कार्यवाही उन्हीं अफ़सर पर होती है जिनका कलम फंसा रहता हुआ है,, कार्य करते तो हैं सबकी मर्जी से लेकिन उनके पास कार्य करने का मौखिक आदेश रहता है ना की लिखित, दूसरी बात सामने चुनाव है जनता के बीच जाना है तो चुनावी माहौल में कर्मचारी ही पीसते हैं बड़े अफ़सर ही पीसते हैं नेता अपने आप को बचा लेते हैं, और यही राजनीतिक इतिहास है,।

क्योंकि अच्छे नीति नियम बनाने का अधिकार केवल सांसद एवं विधायकों को है, हर क्षेत्र में पारदर्शिता कामों में पारदर्शिता लाने की नियम नीति बनाने का काम विधायकों एवं सांसदों का है अफसरों का केवल काम बनाए गए नियमों का पालन करना एवं लागू करवाना है और यही लोकतंत्र है, जहां-जहां भ्रष्टाचार है हर सेक्टर में पारदर्शी का लाने की जरूरत है जिसमें भ्रष्टाचार खत्म हो पर ऐसा पारदर्शिता लाने की कोशिश नहीं होती,, कई चीजों में ऐसा ही देखने को मिलता है, जो भी मामला आता है केवल चुनावी माहौल बस में गर्म रहता है चुनाव खत्म मामला सीधा ठंडा बस्ता में, आजादी के इतिहास में देखें कितने भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जपते हुई कितने पर कार्यवाही हुई यह देखने को बहुत कम मिलता है क्योंकि भारत का कानून भ्रष्टाचार के मामले में कमजोर बनाया गया है,! अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए नियम आज भी चल रहे हैं उसे बदला नहीं गया है चाहे इंडियन पेनल कोट को क्यों ना देख ले जिसे आईपीसी कहते हैं, इसे केवल अपराध और अपराधियों की संख्या एवं मामलों की संख्या लगातार बढ़ते जा रही है,।

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