खेलावन कौन है होमगार्ड है, कि कमिश्नर है?

प्रश्न:-सबसे पहले हम यही लिखेंगे कि कमिश्नर किसे कहते हैं?, कमिश्नर अंग्रेजी शब्द है जिसे हिंदी में आयुक्त कहते हैं। कमिश्नर जिले के एसपी और कलेक्टर के प्रशासनिक लेवल में ऊपर ऊपर के अधिकारी होते हैं, जो केवल संभाग में बैठते हैं, कमिश्नर के ऊपर केवल मुख्य सचिव होते हैं।

ऐसा है कि छुरा तहसील के के अंतर्गत तहसील कार्यालय में काम करने वाला खेलावन पर जिला गरियाबंद के कलेक्टर के द्वारा लगाए जाने वाले जनदर्शन में शिकायत एप्लीकेशन हुआ है। एप्लीकेशन में ऐसा शिकायत हुआ है खेलावन के कारण हम लोग परेशान हैं। एप्लीकेशन में ऐसा लिखा है कि तहसीलदार कहते है खिलावन काम कर लेगा। खिलावन को बोल दिया हूं। एप्लीकेशन में लिखा है खिलावन एक होमगार्ड है और कंप्यूटर चलाता है। तहसीलदार के कार्य वही करता है। शिकायत एप्लीकेशन पत्र में लिखा है खेलावन कई सालों से काम कर रहा है, श्री गुरु ग्लोबल न्यूज़, संपादक गोल्डन कुमार इसकी पुष्टि नहीं करता, तहसील के अंतर्गत किस पद पर है हम भी यही क्षेत्रीय हैं और यही के किसान हैं हमको भी कई काम के लिए तहसील जाना पड़ता है लेकिन हमने आज तक खेलावन को यूनिफॉर्म में नहीं देखा है, यहां के प्रशासन जाने और यहां के पब्लिक जाने की खिलावन कौन से पद पर हैं। कई लोग यह कहते हैं कि खिलावन होमगार्ड है। और होमगार्ड का नियंत्रण होम कमांडेड करते हैं। किस होमगार्ड को कहां भेजना है उन्हीं के ऊपर है। हमारे पोर्टल न्यूज़ में खेलावन का सरनेम जाति ईसलिए नहीं दिख रहे हैं क्योंकि जाति लिखने से, उनके जाति को प्रभावित हो सकती है, उनके जाति के लोग उनको सपोर्ट करने लग जाएंगे हमारे खिलाफ हो जाएंगे। हमारे हिसाब से यहां पर केवल दो ही जाति है एक शिकायतकर्ता किसान जाति और दूसरी जिसके ऊपर शिकायत हुआ है कर्मचारी जाति। और कोई दूसरा पक्ष नहीं होना चाहिए। हमको सारे जानकारी निजी यूट्यूब चैनल से से उनका वीडियो आया। फिर शिकायतकर्ता से संपर्क करने के बाद इनका शिकायत का एप्लीकेशन मिला। फिर हमने जिनके ऊपर शिकायत हुआ है उनसे संपर्क किए। उन्होंने हमसे यही कहा जांच चल रही है उनका एप्लीकेशन गलत है। मैं यहां छोटा सा पब्लिक सेवक हूं। जिनके ऊपर शिकायत हुआ है वह क्षेत्रीय है इसलिए कई प्रिंट मीडिया और अन्य पोर्टल न्यूज़ वाले नहीं चलाएं। क्योंकि क्षेत्रीय आदमी से अपना व्यक्तिगत संबंध कोई खराब करना नहीं चाहते।

इन सब से हम यही मानते हैं भारत में आज भी कई पर्सेंट आबादी मानसिक गुलामी की जिंदगी जी रहा है भारत लोकतंत्र है अंग्रेजों से आजादी मिल गया, साहब यानी अंग्रेज लेकिन आज साहब राज है। कमजोर दिल वाला जिला गरियाबंद तक जा ही नहीं सकता मुश्किल से जाता है डरता है। जनप्रतिनिधि के पास भी जाने से डरते हैं, अपने बातों को नहीं बोल पाते, सवाल यह है अगर जनप्रतिनिधि इसको निराकरण करते तो प्रशासन के पास नहीं जाते, मध्य प्रदेश लोक सेवा अधिनियम में है छत्तीसगढ़ राज्य बने 23 साल हो गए कोई भी जमीन रजिस्ट्री नामांतरण सीमांकन एवं टूर्टी सुधार कार्य इसके लिए अवधि तय किया गया है इतना दिन तक कार्य करना है पर क्यों नहीं कार्य कार्य हुआ है इस पर कोई सवाल नहीं उठाते, कई चीजों में विधानसभा में सवाल उठती है, किसानों को तहसील कार्य में दिक्कत क्यों होता है कोई पारदर्शी कदम क्यों नहीं उठाते। कितने किसानों का लंबित मामला निश्चित अवधि में कार्य क्यों नहीं हो पाता इसका क्या कारण है। इंडिया डिजिटल हो गया है सब कोई 4G 5G स्मार्टफोन चलाते हैं पर कई लोग अभी तक डिजिटल नहीं हुए हैं कई सिस्टम और नियम मालूम नहीं है।

एक चीज और है कुछ चीजें एप्लीकेशन करने पर काम नहीं होने पर पहले उस पर कमियां निकालेंगे, बार-बार बुलाएंगे फिर आदमी बार-बार काम नुकसान के चलते आर्थिक नुकसान करना पड़ता है, और यह ऐसा सिस्टम क्षेत्रीय नहीं पूरे देश का यही सिस्टम है पर यही है, इसमें जनता ही दोषी है प्रशासन और शासन दोषी नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र है मतदान करते समय सेल्फी लेने वाले अंगूठा में स्याही लगी हुई सेल्फी लने वाले बहुत होते हैं लेकिन अपने जनप्रतिनिधि और सेवकों से किया सवाल करने वाले बहुत कम होते हैं, असली लोकतंत्र तभी भारत में होगा जब उसी उंगली से स्याही लगी हुई उंगली से अपने जनप्रतिनिधि और अपने जनसेवक जो पब्लिक कर्मचारी हैं उन पर सवाल कर सके पर यह अभी समय है।

यह मामला किसानों से जुड़ा हुआ है, किसानों से दिक्कत है इन पर प्रशासन क्या कार्यवाही करती है हमें इस पर उम्मीद नहीं है हमारा मकसद पब्लिक को जागरूक करना, है, और इसमें हम कुछ परसेंट जरुर सफल होंगे। क्योंकि आने वाला समय में इलेक्शन है दो ढाई महीने आचार संहिता लगने को बाकी है। आप अपने जनप्रतिनिधि से करवाही नहीं होने पर जवाब पूछ सकते हैं आप उस स्वतंत्र हैं।

एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह संक्षेप में लिख रहे हैं, किसी थाने में गए, मटमैला कपड़ा का वेशभूषा में जो कोई पहचान ना पाए वह आकस्मिक निरीक्षण करने के लिए गए थे, उन्होंने थाने के मुंशी को कहा बैल चोरी हो गया है f.i.r. लिखाना है, फिर मुंशी ने f.i.r. लिखने के लिए मना कर दिया उसको बाहर भगा दिया, फिर उसको बाहर बैठा देख एक कॉन्स्टेबल आया प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को बोला ऐसे f.i.r. लिखने वाला नहीं है कुछ रुपए दीजिए, फिर चौधरी चरण सिंह कुछ रुपए दिए फिर उनका f.i.r. लिखा गया। फिर मुंशी ने एफ आई आर के बाद उनसे हस्ताक्षर करने के लिए बोला बाबा कलम में साइन करेंगे कि अंगूठा लगाएंगे, फिर प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पेन और पैड दोनों मांगे, फिर उझे देखकर सोचा, यह अंगूठा जब आएगा या हस्ताक्षर करेगा, फिर उन्होंने सील लगाया प्रधानमंत्री भारत सरकार और हस्ताक्षर किए, फिर मुंसी का तो कुछ कहना नहीं, घबरा गए और माफी मांगने लग गए, इसमें इतना ही दूर तक है लेकिन आगे का कहानी बताते हैं, उन्होंने पूरे स्टाफ को निलंबित कर दिया, बाद में उन्होंने कहा पूरे स्टाफ को इसलिए कर रहे हैं अगर कुछ अधिकारी को करते हैं तो चपरासी और मुंशी तो नहीं बदलते वही रहता, सिस्टम तो वहीं रहता कहां कहां सुधरता, और यही आज होता है उच्च अधिकारी को बदल देते हैं लेकिन नीचे के कर्मचारी बाबू वही रहते हैं, सिस्टम भी वैसा ही रहता है, सरकार तो जनता बदल देती है ब्यूरोक्रेसी कार्य करने वाले तो वहीं रहते हैं वह तो नहीं बदलते जरूरी है, जरूरी है मानसिकता बदलना हर मनुष्य के लिए जरूरी है, आदमी का पहचान करना जरूरी है कौन कैसा है और उनसे कैसा व्यवहार करना है। इन सब चीजों का कर्मचारियों को ट्रेनिंग होता है पर उनका इस्तेमाल कम होता है उनको कुछ दिखाई नहीं देता,।

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