राजनीति विशेषज्ञ गोल्डन कुमार की रिपोर्ट:_जितने कुल मतदाता होते हैं उससे आधा मतदाता महिलाएं होती हैं और महिलाएं फैक्टर को आज तक बहुत से राजनीतिक पार्टी समझ नहीं पाई है और जो समझ गया उसे जीत मिलती है। उदाहरण के लिए दो हजार अट्ठारह का चुनाव परिणाम रंजना दीपेंद्र साहू जोकि कितने कांग्रेस के लहर में भी बीजेपी से जीत गई क्योंकि महिला फैक्टर साबित हुआ। भारत भले ही पुरुष प्रधान देश है लेकिन महिलाओं की मानसिकता आज तक मनोवैज्ञानिक ढंग से समझ से बाहर है अपना मत को गोपनीय रखते हैं उनको जैसा भी कहो वह अपने हिसाब से ही काम करते हैं। महिलाएं का सोच दृष्टि कुछ अलग ही होती है। महिलाओं के आरक्षण मिलने से महिला सशक्तिकरण एवं कई प्रकार की योजनाओं में महिलाओं का काफी योगदान है और महिलाएं आगे आ रहे हैं राजनीति में। महिला संगठन स्व सहायता समूह एक प्रकार का उदाहरण है,। लोकल क्षेत्र में भ्रमण करने पर पता चलता है सबसे पहला नाम लक्ष्मी अरुण साहू का आ रहा है, क्योंकि महिला भी है पिछड़ा वर्ग समाज से ही है और जिला पंचायत सदस्य हैं। जीते हुए प्रत्याशी हैं और उनका पिछला कार्यकाल जनपद में रहते हुए भी गोल्ड मेडल मिल चुका है अच्छे कार्य के लिए। एवं उससे पहले जनभागीदारी द्वारा संचालित स्कूल में अपना निस्वार्थ सेवा दे चुकी है बिल्कुल निस्वार्थ रूप से बच्चों को शिक्षा देने का काम लक्ष्मी साहू के द्वारा किया गया है। जिला पंचायत सदस्य क्षेत्र क्रमांक 5 से बनते हैं उनको जिला पंचायत गरियाबंद का अध्यक्ष बनने में एक वोट पीछे रह गई। कई राजनीतिक पार्टियां महिला कैंडिडेट उतारती हैं। इसमें कितने सीटों पर महिला कैंडिडेट उतारती हैं। और उसमें कौन कौन सा विधानसभा क्षेत्र आएगा और इसमें कौन सा फेक्टर कारगर साबित होगा चुनाव जीतने के लिए यह चीज देखा जाता है।
रायपुर के संभागीय सम्मेलन कार्यक्रम में कांग्रेस नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी शैलजा से श्रीमती लक्ष्मी अरुण साहू ने मुलाकात किए। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी कुमारी शैलजा का बयान आया था टिकट हाईकमान तय करती है। जिसमें वर्तमान स्थिति परिस्थिति को देखा जाता है। सर्वे रिपोर्ट को देखा जाता है पार्टी गोपनीय तरीके से सर्वे कराती है, फिर सारे रिपोर्ट को देख कर के लास्ट में टिकट का फैसला होता है और ऐसा माना जा रहा है छत्तीसगढ़ में कई सीटों पर महिला कैंडिडेट उतार सकती है। और ऐसे सीटें भी हो सकती हैं जहां महिला कैंडिडेट आज तक नहीं बना है उसमें राजिम विधानसभा का नाम आ रहा है क्योंकि यहां से कोई महिला विधायक नहीं बनी है और राष्ट्रीय पार्टी ने टिकट भी महिला को नहीं दिया है। बहुत साल पहले हमको याद है, बीजेपी ने यहां से डॉक्टर नीना सिंह को टिकट दिया था परंतु वह जीत नहीं पाई क्योंकि यहां का फैक्टर ओबीसी फैक्टर अधिक महत्वपूर्ण है। और उस समय की स्थिति परिस्थिति काफी अलग थी। चुनाव में कई बड़े-बड़े दिग्गज भी चुनाव हार जाते हैं राजिम विधानसभा या देश का विधानसभा या देश का चुनाव 1977जैसा चुनाव कोई नहीं देखा होगा खैर उस समय हम तो पैदा ही नहीं हुए थे। लेकिन जो वर्तमान में उस समय जो थे वोटिंग किए थे उनको इतिहास स्थिति परिस्थिति वर्तमान के लोगों को बताना चाहिए। क्योंकि कर्म प्रधान देश है कर्म से किस्मत बदलती है और जिनके भाग्य मेरा जो है उनको कोई बदल नहीं सकता जीत उसी को मिलेगी और आने वाला समय में परिणाम ही पता चलेगा कौन है जीतेगा। लेकिन कई चीजें टिकट और उम्मीदवारी से ही पलड़ा भारी और कमजोर दिखाई देता है कौन ज्यादा मजबूत है किनका ज्यादा स्थिति अच्छा है। कई चीजें टिकट और उम्मीदवारी से संभावना दिखाई देती है और कुछ चीजें महसूस होती हैं उससे पहले कुछ कहना मुश्किल है।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम भारत जोड़ो यात्रा के समय की तस्वीर!
राजिम के वर्तमान विधायक अमितेश शुक्ल।