हड़ताल में जा रहे हैं सरकारी स्कूल के गुरुजी लेकिन तुम्हारा कितना है रोजी?

छत्तीसगढ़ में स्कूल खुला नहीं है और सरकारी स्कूल के कर्मचारी शिक्षक सहायक शिक्षक एवं शिक्षाकर्मी हड़ताल की तैयारी कर लिए हैं, बस इनका प्लस प्वाइंट, यहीं है इनका संख्या अन्य कर्मचारियों से अधिक है, अन्य सरकारी कर्मचारियों के काम के मुकाबले इनकी तुलना करें तो इनका काम कम है फिर भी वेतन विसंगति मांग रहे हैं सरकारी स्कूल के शिक्षक के अलावा अन्य कर्मचारियों की मांग एक प्रकार की जायज है क्योंकि, उनको ग्रीष्मकालीन छुट्टी नहीं मिलता, कइ विभाग के कर्मचारी है जिनको रविवार को भी घर में होमवर्क करना पड़ता है, उदाहरण के लिए पुलिस विभाग हड़ताल वगैरह नहीं करते इनको तो त्यौहार में भी छुट्टी नहीं मिलता और ड्यूटी सबसे टफ़ है 12 घंटा से अधिक, कभी-कभी नाइट ड्यूटी, एवं नेताओं के आगे डंडा लेकर खड़े रहना का ड्यूटी, फिर जनसुरक्षा पेट्रोलिंग,मनोवैज्ञानिक ढंग से पुलिस के कर्मचारी बहुत पीड़ित रहते हैं उनका मानसिक संतुलन एक प्रकार का ठीक नहीं रहता ड्यूटी के कारण यह कई मामले आ चुके हैं। इनकी मासिक तनख्वाह के मूल्यांकन करें तो शिक्षक लोगों को 11:00 बजे ड्यूटी और 4:00 बजे छुट्टी और शनिवार को हाप डे, एवं त्यौहार अन्य में अलग से छुट्टी ग्रीष्मकालीन छुट्टी, लेकिन काम के आधार पर इनका किसी भी प्रकार का वेतन में कटौती नहीं होता, इनको पूरा महीने का भुगतान मिलता है, सरकारी स्कूल के टीचर मास्टर को लगभग ₹1000 का रोजी मिलता है वही प्राइवेट स्कूल के काम करने वाले मास्टर को ₹300 रोजी मिलता है, क्वालिफिकेशन दोनों का बराबर है अंतर बस सरकारी और प्राइवेट का है, खर्च देखें तो दोनों मोटरसाइकिल से चलते हैं और सरकारी स्कूल के टीचर कार में अधिकतर चलते हैं और प्राइवेट स्कूल के टीचर मोटरसाइकिल में चलते हैं अब इनका बचत कितना होता होगा इनका घर कैसे चलता होगा यह सोचने का विषय है। अगर इनका तुलना करें तो, इसमें शासन की पैसा बचाने की भलाई यही है कि शिक्षा विभाग को ठेकेदारी करने में ही है सारे काम को ठेकेदारी कर दें, अलग से इसका मेंटेनेंस बनाने के लिए एक सरकारी कर्मचारी, बच्चों का शिक्षा ठेकेदारी करने में शासन की बचत हो सकती है, क्योंकि उनका कर्मचारी कम भुगतान में भी काम बराबर कर सकते हैं, दूसरी बात इसमें आती है शासन के भी लापरवाही है, अब तकनीक विकसित हो गया है, उपस्थिति के लिए सेंसर आ गया है, इसको प्रत्येक स्कूल में लगाना चाहिए उपस्थिति के लिए एवं छुट्टी के लिए, कई ऐसे शिक्षक है जो ड्यूटी नहीं करते इधर उधर का बहाना बनाकर के, कई प्रकार के शासन की लापरवाही एवं कमियों को फायदा उठाते हैं। सेंसर के साथ-साथ निगरानी समिति बनाकर के भी इनको काम को देखा जा सकता है, एक प्रकार का चुनावी स्टंट है चुनाव को देख कर के यह फैसला लिया जा रहा है।

बच्चों को पढ़ाने वालों को कौन पड़ेगा कि वेतन विसंगति फिलहाल दूर करना मुश्किल है, कई राज्यों की समस्या है, इनको मालूम होना चाहिए कि सरकार कर्जा में चल रही है और कर्जा में क्यों चल रही है इनको बताना चाहिए क्योंकि इनसे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं है, देश में सामाजिक परिस्थितियां ही विसंगति है, पांचों उंगली बराबर नहीं है अगर पांचो उंगली को बराबर कर देंगे तो काम नहीं हो सकता यह सिस्टम का हिस्सा है, यही भलाई है संतुष्टि ही संतोष में ही संतुष्टि है, मनरेगा मजदूरों को देखो किसानों को देखो स्थिति कैसी है उन लोग 1 एकड़ में कैसे काम कर रहे हैं और जिनके पास जमीन भी नहीं है फिर भी अपना परिवार चला रहे हैं, देश में कई मजदूर है, देश में 80 करोड ऐस आबादी है जिनका गुजर-बसर ₹200 में भी होता है पूरा परिवार चलता है, अपने खर्च में कटौती करके सच्ची हो सकती है या फिर इसका कुछ उपाय है तो शासन को बताएं शासन किस प्रकार पैसा बचा सकती है, शासन को क्या करना चाहिए।

छत्तीसगढ़ में पटवारी पहले से ही हड़ताल पर हैं सहकारी समिति के कर्मचारी भी हड़ताल पर हैं, लोगों को चावल राशन मिलना मुश्किल है, पंचायत सचिव भी कुछ समय पहले हड़ताल पर थे इनका कुछ नहीं हुआ। हड़ताल वापस ले लिए, देश की आर्थिक स्थिति और इकोनामी को खुद देख देखिए, स्थिति कितना खराब है, देश को कॉर्पोरेट चला रहे हैं और ब्यूरोक्रेट काम कर रहे हैं सिस्टम चल रहा है, चुनाव कैसे जीतना है राजनीतिक पार्टियों को मालूम हो चुका है, सरकारी कर्मचारियों का जनाधार राजनीतिक पार्टियों को मालूम हो चुका है, कितना प्रभावित और नुकसान कर सकते हैं, इसका भी विकल्प मिल चुका है, क्योंकि जितना खर्चा कर्मचारियों पर करेंगे इतना खर्चा पब्लिक के लिए करेंगे तो चुनाव जीता जा सकता है। क्योंकि पब्लिक की संख्या कर्मचारियों के मुकाबले ज्यादा है, और वोट तो सब का बटता है इधर उधर जाता है। जो ज्यादा वोट लाएगा वही चुनाव जीतता है। बाकी इसके खिलाफ पड़े वोट कोई मतलब नहीं सभी पार्टियों में वोट जाने वाले पर कोई मतलब नहीं। भले ही इनका वोट प्रतिशत जीतने वाले से ज्यादा क्यों ना हो लेकिन वोट तो इधर-उधर बटता ही है। वोट एकतरफा कभी जा ही नहीं सकता क्योंकि कई विचारधारा वालों का देश है।

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