मड़ेली कहा है ? आवंटित प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री प्लाट जमीन?

1965 में देश में भयंकर अकाल पड़ा था, तब देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे, 1962 भारत चाइना युद्ध के बाद, तब भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे विकट परिस्थिति में लाल बहादुर शास्त्री ने कमाल संभाला था, उसी का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर आक्रमण कर दिया लेकिन लाल बहादुर शास्त्री ने एवं भारतीय सेना ने डटकर मुकाबला किया, दुनिया के अन्य देशों के दबाव में भारत ने पाकिस्तान के साथ ताशकंद में समझौता किया, उस समय के प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री का विदेश में आकाशमिक मृत्यु का, सूचना आया,प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का मृत्यु कैसे हुआ? क्यों हुआ? इसका आज तक ठोस परिणाम एवं जानकारी सामने नहीं आया है आज भी विचाराधीन है। लेकिन प्रधानमंत्री के खाद्य संकट के बीच उनके कहने पर देश के कई नागरिकों ने 1 दिन का भोजन त्याग किया और, पूरे देश भर में लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर जमीन आवंटित हुई लाखों हेक्टेयर, भारत में खाद्य संकट कम करने के लिए, खेती करने के लिए, उस समय भगवान भरोसे खेती होती थी सिंचाई का जमाना कम था एवं बैलों के माध्यम से खेती होती थी,वह जमीन जिसको आवंटित हुआ था वह बिक्री योग्य नहीं था यानी उसको बिक्री नहीं कर सकते परिवार दर परिवार हस्तांतरित हो सकता है। उस समय उतना तकनीक विकसित नहीं हुआ था डाटा कंप्यूटर का जमाना नहीं था लेकिन आज ऑनलाइन दस्तावेज में उनके जमीने कहां है उनके जमीन का क्या उपयोग हो रहा है बिक्री वगैरा तो नहीं हो रहा है यह समझ से बाहर है अगर जांच करें तो कई चीजें इसमें सामने आ सकती हैं। या इसमें आबंटित जमीन बिक्री तो नहीं हो गई ?

पहले छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्यप्रदेश में था तो जमीन का सर्कल रेट बहुत कम था और बाजार भाव भी कम था जैसे ही छत्तीसगढ़ राज्य बना राजधानी बनने के बाद राजधानी की जमीन है सरकारी दर पर खरीदी हुई तो बहुत मुआवजा मिलने के बाद राजधानी रायपुर के आसपास के किसान इधर-उधर जमीन खरीदने के लिए ग्रामीण क्षेत्र की तरफ आए और जमीन का रेट बढ़ गया एवं सिंचाई और बिजली संसाधन बढ़ने के बाद कीमत और बढ़ गया। केवल अभी आदिवासी किसानों के जमीन कम भाव में बिकते हैं क्योंकि अन्य उसे खरीद नहीं सकते केवल आदिवासी ही खरीद सकते हैं इस कारण उनका जमीन कम भाव में बिकता है। सरकारी सर्कल रेट से भी कम भाव में। कहीं-कहीं पर जमीन के हिसाब से अच्छे भाव भी मिल जाते हैं। कहते हैं आजादी के बाद एवं 60 और 70 के दशक में जमीन एक बोतल दारु तक में भी बिक जाते थे। आजादी से पहले आय का स्रोत राजस्व केवल जमीन का लगान ही था जो लगान नहीं चुका पाते थे पुनः जमीन जमीदार के पास वापस चली जाती थी, किसान लगान चुकाने इतना भी खेती में बेनिफिट नहीं होता था,

1992 बंदोबस्त के बाद मध्य प्रदेश सरकार में अधिनियम पास हुआ था सरकारी जमीन खेती के लिए मिले हुए किसान आवंटित किसान पट्टे में दिए हुए भूमि को बिक्री नहीं कर सकते। छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही पूरे ऑनलाइन रिकॉर्ड 2014 में लागू हुए इससे पहले कई रिकॉर्ड में छेड़छाड़ एवं पुराने रिकार्ड आज भी भू अभिलेख शाखा में सुरक्षित है। यानी जो रिकार्ड में है वही मान्य होगा और जो विटनेस थे वह तो ऊपर चले गए उनका क्या कहना है उनका क्या बयान है यह तो अब स्पष्ट बिल्कुल नहीं हो सकती।? एवं कई इन से जुड़े हुए अधिकारी या तो ट्रांसफर हो गए या तो ऊपर चले गए, इसका वास्तविकता समझना बहुत जटिल है। कई जमीन बिक्री पर बिक्री कई बार बिक्री हो गई कई मालिक बदल गए कई भूमिस्वामी बदल गए। यानी जो जिंदा है स्थितियां परिस्थितियां वही लोग ही समझ और झेल सकते हैं।

इसमें कई जमीनों के दलाल और भूमाफिया भी ऊपर चले गए। कई तहसीलदार आए और उनका ट्रांसफर हो गए। पट्टे में दी गई भूमि बिक्री हो गए। मतलब बिक्री हुई है तो शासन के पास इसका राजस्व जरूर गया है। क्या इसको सही माने? क्योंकि नियम बनाने वाला शासन और नियम बना बिगाड़ने वाला प्रशासन, कोन बिगड़ा है देश का सिस्टम।

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