कांग्रेस के लिए एक तरफ कुआं एक तरफ खाई उड़ गई विपक्षी एकता की हवा हवाई?

भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी को राजनीति के चार अध्याय साम दाम दंड भेद में मास्टर की डिग्री हासिल है और इन पर और कामयाबी भी मिल रही है, कांग्रेस और आम आदमी में बढ़ रही नज़दीकियां अब टूटती हुई दिखाई दे रही है। माननीय सुप्रीम कोर्ट से 8 साल की लड़ाई के बाद अरविंद केजरीवाल के पक्ष में फैसले को केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर पलट दिया फिर अरविंद केजरीवाल ने ममता बनर्जी नीतीश कुमार तेजस्वी यादव, शरद पवार उद्धव ठाकरे से मुलाकात करने के बाद इन सभी नेताओं ने अरविंद केजरीवाल को समर्थन किया लेकिन अब कांग्रेस अरविंद केजरीवाल को कोई भाव नहीं दे रही है और दे भी नहीं सकती क्योंकि, कांग्रेस के दिल्ली और पंजाब के लोकल नेताओं ने उनसे दूरी बनाने का कहा है और इन्हीं पर काम कर रही है। राज्यसभा में इस अध्यादेश के विरोध में कांग्रेस का क्या रुख रहेगा यह अभी विचारणीय है। लेकिन एक चीज स्पष्ट है कांग्रेस इस मुद्दे पर बिल्कुल दुविधा में है क्या करें। और क्या नहीं करें। कांग्रेस क्षेत्रीय क्षत्रप अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी और ममता बनर्जी और बीआरएस तेलंगाना राज्य में अगर इनका समर्थन करती है तो कांग्रेस को यहां खुद को नुकसान है यह देख रही है।

आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे एवं राहुल गांधी से अध्यादेश से संबंधित मामले पर समय मांगा था पर अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस में कोई भाव नहीं दिया, एवं उनके प्रवक्ता पवन खेड़ा के द्वारा बयान आया पहले अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के नेताओं के बारे में अब तक किए गए अनर्गल टिप्पणी पर पहले क्षमा मांगे फिर उनसे बात किया जाएगा, मनोवैज्ञानिक ढंग से देखें तो इसमें विपक्षी एकता तोड़ने के लिए बीजेपी कामयाब दिख रही है और बीजेपी के कूटनीति और रणनीति के शिकार में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी फस गई है जो अध्यादेश ला करके बिल्कुल कूटनीति फैसला उनका था यह guru ग्लोबल न्यूज़ ने पहले ही अपने पुराने न्यूज़ में बता चुके हैं।

अखिलेश यादव और कांग्रेस में भी अब दूरियां दिखाई दे रही है क्योंकि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में मजबूत और कांग्रेस वहां कमजोर की स्थिति में है अगर कांग्रेस से वहां अखिलेश यादव गठबंधन करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। एवं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कर्नाटक चुनाव कांग्रेस के जीतने पर ध्यान दिया जहां कांग्रेस मजबूत है वहां क्षेत्रीय दलों को और जहां कांग्रेस कमजोर है कांग्रेस को विपक्ष को यानी क्षेत्रीय क्षत्रप को कांग्रेस को मदद करना चाहिए तभी बीजेपी को आम चुनाव में हरा सकते हैं। लेकिन कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों को छोड़ना मुश्किल दिखाई दे रहा है और तेलंगाना में भी किसी और के लिए भी छोड़ना मुश्किल दिखाई दे रहा है क्योंकि वहां कांग्रेस से सीधी टक्कर में है और राजनीति अब स्वार्थ की राजनीति हो गई है कोई अपना सत्ता नहीं छोड़ना चाहता।

राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की रणनीति विशेषज्ञों को समझना मुश्किल हो सकता है कांग्रेस एवं अन्य दल नए सांसद भवन का उद्घाटन विरोध कर रही है बल्कि कांग्रेस केंद्र सरकार की नीति आयोग की बैठक में अपने मुख्यमंत्री को भेज रही हैं लेकिन कई दल ममता बनर्जी नीतीश कुमार केसीआर अरविंद केजरीवाल नीति आयोग की बैठक से बायकाट कर रहे हैं। विपक्षी एकता होना ऐसे लग रहा है मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, फिर कोई ना कह दे मोदी है तो मुमकिन है,कुछ भी मुमकिन है।

कौन बनेगा प्रधानमंत्री लगता है या पहले छोड़ना पड़ेगा पहले यह तय करना होगा विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा?क्योंकि यहां पर कोई किसी को कमजोर नहीं आ रहे हैं कांग्रेस अलग दिशा में चल रही है और केजरीवाल अलग मूड में है अखिलेश यादव और ममता बनर्जी का कुछ और कहना है और केसीआर कुछ अलग कह रहे हैं। सब के सब के समर्थक अपने नेता को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।

बीजेपी को हराने के लिए राजनीति का बेहतर पॉलिसी चाहिए बीजेपी कूटनीति रणनीति साम-दाम-दंड-भेद सब में महारत हासिल है और उनके पास आर्थिक रूप से भी कोई कमजोर नहीं है। बीजेपी के हराने के लिए कुशल रणनीति की आवश्यकता है जो फिलहाल बीजेपी के अलावा विपक्ष में कुछ दिखाई नहीं दे रही है क्योंकि विपक्ष आपस में लड़ रही है और फिलहाल बीजेपी अलग है। राजनीति समीकरण में जो बहुमत लाता है वही जीता है और विपक्ष का वोटों में बंटवारा होना बिल्कुल निश्चित दिखाई दे रहा है। ऐसे में बीजेपी कम परसेंट वोट लाकर भी चुनाव में मजबूत दिखाई दे रही है। एवं 2023 विधानसभा चुनाव में कुछ फैसले आ सकते हैं।

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