कांग्रेस का देखें तो इतिहास देखें जब भी पार्टी की हार होती है आपसी गुटबाजी और खींचतान के कारण हारती है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश, कर्नाटक में कांग्रेस की बड़ी जीत पूरे देश के लिए संदेश है। राजस्थान में देखें तो खुर्सी के लिए सचिन पायलट और अशोक गहलोत में 2018 से संघर्ष चल रहा है। छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंह देव में चल रहा था कि फिलहाल चुनाव नजदीक के होने के कारण आज शांत है। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अरविदर सिंह के कारण पंजाब की सत्ता हाथ से निकल गई। गुटबाजी तो खैर भारत के हर राजनीतिक पार्टी में है लेकिन कांग्रेस में पब्लिक में सामने आ जाती है। आजादी के बाद से ही देश का सिस्टम ब्यूरोक्रेट चला रहे हैं और पढ़े-लिखे ब्यूरोक्रेट को सत्ता में संघर्ष होने के कारण मनोवैज्ञानिक ढंग से उन पर दबाव नहीं बन पाता है और उनकी कमजोरियों को फायदा उठा कर के काम करते हैं। आपसी खींचातानी वाले राज्यों में ब्यूरोक्रेसी कंट्रोल में नहीं रहते मनमानी होता है। सरकारी ब्यूरोक्रेट को मालूम हो जाता है किसका सुने और किसका काम करें। कर्नाटक में सत्ता आने के बाद आलाकमान बड़ी असमंजस में है फैसला लेने में किसको मुख्यमंत्री बनाएं। एवं राजस्थान में सचिन पायलट गहलोत सरकार के यानी अपने सरकार के खिलाफ बीजेपी सरकार में हुए भ्रष्टाचार पर एवं पेपर लीक घोटाले पर कार्रवाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं पार्टी वहा भी धर्म संकट में पड़ गई है।
जब कांग्रेस पार्टी में आएगी अनुशासन तभी ठीक होगा देश का प्रशासन?
