खाद्य सुरक्षा अधिनियम एवं अभी चुनाव को देखते हुए प्राय प्राय सभी लोगों का राशन कार्ड बन गया है। कुछ ऐसे रहीस हितग्राहियों का राशन कार्ड बन गया है जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मिलने वाला चावल यूज़ नहीं करते। उस चावल को नजदीकी, दुकानों में बेच करके पतला वाला चावल खरीद के लाते हैं। जितना धान का समर्थन मूल्य है उससे कम दामों में चावल को बेचते हैं और दुगने दाम में पतला चावल खरीदते हैं। खाद्य विभाग के अधिकारी ऐसे बड़े दुकानों में एवं गांव के दुकानों में कोई छापेमारी नहीं करती। एवं ऐसे हितग्राहियों को चिन्हित नहीं करती जो चावल को बेचने का काम करते हैं। सरकार निजी राइस मील से कहीं अधिक दामों में चावल खरीद करके गरीब हितग्राहियों को ट्रांसपोर्ट का खर्चा करके एवं सरकारी समिति को कुछ प्रतिशत कमीशन देकर उनके माध्यम से वितरण करवाती है! सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मिलने वाला चावल में पोस्टिक आहार वाला चावल मिलाया जाया गया है खाद्य विभाग उसे आसानी से पकड़ सकती है पर खाद्य विभाग के अधिकारी केवल त्योहारों में बड़े-बड़े पैसे वाले मिलावट मिलने वाले जगह में बस छापामारी करती है बाकी समय ऑफिस में रहते हैं। मिठाई के दुकानों में छापेमारी करते हैं और उसमें कुछ मिठाई मिल सके। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत मिलने वाला चावल को खरीदना भी और बेचना भी एक प्रकार का शासन को नुकसान है। ऐसे हितग्राही का राशन कार्ड को समाप्त करने का कार्रवाई होना चाहिए? इसमें निष्कर्ष निकाले तो शासन का भी लापरवाही सामने आती है सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मिलने वाला चावल ऐसा कुछ निश्चित चावल में कलर मिलाना चाहिए ताकि आसानी से पहचाना जा सके। इसी कारण केंद्र एवं राज्य सरकारी कार्य में चलती हैं क्योंकि दूर दृष्टि और बेहतर पॉलिसी नहीं होती। और वोट की राजनीति के लिए कोई कार्यवाही भी नहीं करती।

- श्री गुरु ग्लोबल न्यूज़ इस न्यूज़ के माध्यम से यही संदेश है सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मिलने वाला चावल ऐसे हितग्राही अपना राशन कार्ड में नाम कटवा लें जिनका किडनी और लीवर सब्सिडी दर में राशन मिलने वाले चावल को पचा नहीं पाते हैं पतला चावल खरीदते हैं और शासन को नुकसान होता है।
- लगभग 95% हितग्राही चावल बिल्कुल यूज करते हैं और खाते हैं कुछ परसेंट हितग्राही है जो बेचते हैं। जरूरतमंद हितग्राही के लिए अच्छी योजना है।