जनसंख्या और क्षेत्रफल से देखें तो या तुलना करें, छत्तीसगढ़ भारत में सबसे ज्यादा दारू की बिक्री होती है,सलाना जो 20000 हजार करोड़ से अधिक,यह केवल लीगल आंकड़े हैं। और यही प्लेन और मसाला का क्वार्टर या गोल्डन गोवा दारू, ब्लैक में बिक रहे दारू का आंकड़ा नहीं है जो सीमावर्ती राज्यों से सप्लाई होती है उड़ीसा एवं मध्य प्रदेश। दारू का जो मुनाफा है निर्माण करने वाली कंपनी के पास और सरकार अपना कमीशन लेती है और जिसे राजस्व भी कह सकते हैं। सही ढंग से काम करें तो छत्तीसगढ़ के दारू के पैसे से छत्तीसगढ़ का आधा कर्जा कम किया जा सकता है। तो पैसा कहां जा रहा है? किसके जेब में जा रहा है। कुछ दिन पहले,हालांकि छत्तीसगढ़ में दारू बिक्री में गड़बड़ी का मामला EDजांच कर रही है और कई जगह छापेमारी की है। क्या कार्यवाही कर रही है उसका खुलासा नहीं हुआ है या मामला को ई डी वाले रफा-दफा तो नहीं कर देंगे? क्योंकि अपना किडनी और लीवर को दांव में लगाने वाला पूछता है एक छत्तीसगढ़ का रोज दारु पीने वाला नागरिक। कहां जा रहा है दारू का पैसा ? अल्कोहल में निर्माण करने में केमिस्ट्री में दसवीं पास गोल्डन कुमार को पूरा मालूम है कितना लागत लग सकता है। कितना पानी में कितना डिग्री में स्परीट मिलाना है, कितना में मिलाते हैं और एक क्वार्टर में कितना लागत लगता है और कितना में बिक्री होता है वह सोचने वाला विषय है।
- आज भले ही इसको दारू कहते हैं आदि काल में देवता और राक्षस दोनों दारु का सेवन करते थे और आदीकाल भाषा में धार्मिक भाषा में सोमरस कहते हैं। जो ग्लोबल न्यूज़ के संपादक गोल्डन कुमार के हाथ में है।
- मुगल काल में अंग्रेज केवल अंग्रेजी दारु पीते थे, लेकिन मुंगेर के शासक शायद मीर जाफर या मीर कासिम, उनको देसी पिलाया और देसी पीते ही अंग्रेज बहुत खुश हो गए, दारू से बेहद प्रभावित हो गए, फिर मुंगेर के शासक ने अंग्रेजों से हथियार बनाने का आडिया ले लिया, वह भी बिल्कुल कम खर्च में, तभी से मुंगेर में आज भी भारत का हथियार बनाने का मुख्य केंद्र है। तब से आज तक वहां हथियार बनाने का कारखाना है । इसे कहते हैं इंडियन दिमाग। दारू पीने के बाद आदमी सच बोलता है, यही बुद्धि लगाकर के सब काम किया गया था।
- छत्तीसगढ़ दारू बिक्री में कहते हैं, नियम में कुछ कमजोरी है, एक आदमी को 25 क्वार्टर देने का प्रावधान है, खुद पीने वाला आदमी एक क्वार्टर खरीदेगा और जिसको अधिक वाटर खरीदना रहेगा उसके घर में कुछ कार्यक्रम रहेगा तभी खरीदेगा अन्यथा नहीं।
- कहते हैं कलयुग है चोर पहले चाबी बनाते हैं और दारू में भी वही है दारू का बिल भले ही ऑनलाइन रहता है ऑनलाइन बिक्री नहीं होती इसी का फायदा जरूर उठाते हैं। कितना बिक्री हो रहा है कितना आवक आ रहा है। दारू का पैसा किस खाते में जमा हो रहा है यह सब आंकड़ा स्पष्ट नहीं होता। पूरा पूरा मकड़ी के जाल की तरह फैला है।