पिपरछेड़ी जलाशय नहर लाइन में भूमि अधिग्रहण में गोलमाल।

*पीपरछेड़ी जलाशय नहर निर्माण में गड़बड़ी, सर्वे के हिसाब से बना नहीं*छुरा गरियाबंद *मड़ेली-छुरा/* गरियाबंद जिले की सबसे बड़ा पीपरछेड़ी जलाशय परियोजना, नहर विस्तारीकरण परियोजना के तहत नहर निर्माण किया जाना है। जिससे क्षेत्र के पीपरछेड़ी, मड़ेली, खड़मा, सहित दर्जनों गांवों के कृषकों को उन्नत खेती व दोहरी फसल पैदावार कर आर्थिक स्थिति मजबूत करने की आस जगी थी। पर बांध के बड़े नहर सहित अन्य नहरों का निर्माण कार्य कराया जाना किसानों के साथ कुठाराघात है। शासन के योजना से वंचित एवं सूखे का दंश झेल रहे किसानों का कहना है कि विगत वर्षों से विभाग द्वारा नहर निर्माण कार्य कराया जा रहा है। पीपरछेड़ी जलाशय परियोजना के अधूरे नहरों के निर्माण नहीं होने के कारण क्षेत्र के जरूरतमंद किसानों को पानी से वंचित होना पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर ग्राम पंचायत मड़ेली में विभाग के चौकाने वाले कारनामे देखने को मिल रहे हैं। यहां कई एकड़ भूमि पर सिंचाई के पानी आने के लिए पुलिया और फालों का निर्माण किया गया है। लेकिन नहर का निर्माण में जल संसाधन विभाग की घोर लापरवाही के कारण कई किसान परेशान हैं। पीपरछेड़ी जलाशय नहर विस्तार के लिए सर्वे किया गया। नहर सर्वे के आधार पर भू-अधिग्रहण किया गया, और सिंचित-असिंचित कृषि भूमि के लिए अलग-अलग मापदंड हिसाब से मुआवजा भी बट गया। किसानों का भू-अधिग्रहण हुआ, लेकिन बिना जमीन नुकसान हुए ,कई किसानों को मुआवजा भी मिल गया है। ऐसे कई किसानों के पूरे जमीन पर नहर निर्माण कर दिया गया। और पड़ोसी किसान का भू-अधिग्रहण हुआ है, लेकिन जमीन क्षति नहीं हुई। और मुआवजा लेकर चुपचाप बैठे देख रहा हैं। किसानों का जितना कृषि भूमि का अधिग्रहण हुआ है, उतना में ही नहर निर्माण हो, बाकि उन किसानों के जमीन में नहर निर्माण कराया जाए, जो भू-अधिग्रहण का मुआवजा लेकर चुप बैठे हैं , उनके कृषि भूमि पर नहर निर्माण किया जाएं। शासन-प्रशासन इस ओर ध्यान आकर्षित करें ऐसे कई किसान जिनका कृषि भूमि क्षति नहीं हुआ। उन किसानों से मुआवजा राशि वसूल किया जाए। और उचित किसानों को यह मुआवजा राशि दिया जाए। उदाहरण- ग्राम मड़ेली के किसान जिसकी लगानी कृषि भूमि खसरा नंबर 709 में 0.6 हे. भू-अधिग्रहण हुआ है। पड़ोसी किसान ग्राम मड़ेली जिनका खसरा नंबर क्रमशः 710 में 0.6 हे. ,711में 0.1 हे. 712 में 0.1 हे. भू-अधिग्रहण हुआ है। जबकि इन तीनों किसान का जमीन में नहर नहीं जा रहा है। और खसरा नंबर 709 का सारा कृषि भूमि नहर के लिए खोद दिया गया है। खसरा 709 के किसान का जितना कृषि भूमि का अधिग्रहण हुआ है उतना में ही नहर निर्माण हो, बाकि नहर इन तीनों किसानों के जमीन खसरा नंबर क्रमशः में नहर निर्माण कराया जाए। नहीं तो जिसका कृषि भूमि ख़राब हो रहा है।उसे मुआवजा की राशि दिया जाए। बिना जमीन नुकसान हुए ये तीनों किसानों को मुआवजा मिला है, उस राशि को वाजिब किसान को दिया जाए। इसी तरह कई और किसान है उसका मौके पर पहुंचकर भू-अधिग्रहण की छाया प्रति लेकर निरीक्षण किया जाए। एवं दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई किया जाएं। भागीरथी निर्मलकर पिता मनराखन निर्मलकर के द्वारा श्री मान अनुविभागीय अधिकारी खण्ड( राजस्व) छुरा जिला गरियाबंद (छत्तीसगढ़) के पास दिनांक को अपना आवेदन प्रस्तुत किया है।जिसका अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।फसल पैदावार कर आर्थिक स्थिति मजबूत करने की आस जगी थी। पर बांध के बड़े नहर सहित अन्य नहरों का निर्माण कार्य कराया जाना किसानों के साथ कुठाराघात है। शासन के योजना से वंचित एवं सूखे का दंश झेल रहे किसानों का कहना है कि विगत वर्षों से विभाग द्वारा नहर निर्माण कार्य कराया जा रहा है। पीपरछेड़ी जलाशय परियोजना के अधूरे नहरों के निर्माण नहीं होने के कारण क्षेत्र के जरूरतमंद किसानों को पानी से वंचित होना पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर ग्राम पंचायत मड़ेली में विभाग के चौकाने वाले कारनामे देखने को मिल रहे हैं। यहां कई एकड़ भूमि पर सिंचाई के पानी आने के लिए पुलिया और फालों का निर्माण किया गया है। लेकिन नहर का निर्माण में जल संसाधन विभाग की घोर लापरवाही के कारण कई किसान परेशान हैं। विभाग और ठेकेदार के मिलीभगत से यहां अधिकतर निर्माण किए गए पुलिया निर्माण के दौरान निकाले गए मिट्टी और मलबा को किसानों के खेतों में ही छोड़ दिया गया। जिस कारण से किसान उन खेतों के आधे हिस्से में ही खेती कर पाए। परेशान किसान अधिकारियों के चक्कर लगाए, लेकिन अधिकारियों द्वारा किसानों को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया।, जिससे किसानों ने अपने खुद के खर्च से मिट्टी, मलवा हटाया, जिससे किसान आक्रोशित है। पीपरछेड़ी जलाशय नहर विस्तार के लिए सर्वे किया गया। नहर सर्वे के आधार पर भू-अधिग्रहण किया गया, और सिंचित-असिंचित कृषि भूमि के लिए अलग-अलग मापदंड हिसाब से मुआवजा भी बट गया। किसानों का भू-अधिग्रहण हुआ, लेकिन बिना जमीन नुकसान हुए ,कई किसानों को मुआवजा भी मिल गया है। ऐसे कई किसानों के जमीन पर नहर निर्माण कर दिया गया। और पड़ोसी किसान का भू-अधिग्रहण हुआ है, लेकिन जमीन क्षति नहीं हुई। और मुआवजा लेकर चुपचाप बैठ देख रहे हैं। किसानों का जितना कृषि भूमि का अधिग्रहण हुआ है, उतना में ही नहर निर्माण हो, बाकि उन किसानों के जमीन में नहर निर्माण कराया जाए, जो भू-अधिग्रहण का मुआवजा लेकर चुप बैठे हैं , उनके कृषि भूमि पर नहर निर्माण किया जाएं। शासन-प्रशासन इस ओर ध्यान आकर्षित करें ऐसे कई किसान जिनका कृषि भूमि क्षति नहीं हुआ उन किसानों से मुआवजा राशि वसूल किया जाए। और उचित किसानों को यह मुआवजा राशि दिया जाए। उदाहरण- ग्राम मड़ेली के किसान जिसकी लगानी कृषि भूमि खसरा नंबर 709 में 0.6 हे. भू-अधिग्रहण हुआ है। पड़ोसी किसान ग्राम मड़ेली जिनका खसरा नंबर क्रमशः 710 में 0.6 हे. ,711में 0.1 हे. 712 में 0.1 हे. भू-अधिग्रहण हुआ है। जबकि इन तीनों किसान का जमीन में नहर नहीं जा रहा है। और खसरा नंबर 709 का सारा कृषि भूमि नहर के लिए खोद दिया गया है। खसरा नंबर 709 का जितना कृषि भूमि का अधिग्रहण हुआ है उतना में ही नहर निर्माण हो, बाकि नहर इन तीनों किसानों के जमीन खसरा नंबर क्रमशः 710, 711, 712 में नहर निर्माण कराया जाए। नहीं तो जिसका कृषि भूमि ख़राब हो रहा है। उसे मुआवजा की राशि दिया जाए। बिना जमीन नुकसान हुए ये तीनों किसानों को मुआवजा मिला है, उस राशि को वाजिब किसान को दिया जाए। इसी तरह कई और किसान है उसका मौके पर पहुंचकर भू-अधिग्रहण की प्रमाणित नक्शा एवं अन्य की छाया प्रति लेकर चिन्हांकित किया जाए। एवं गलत नहर निर्माण करने वाले दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई किया जाएं। खसरा नंबर 709 के किसान द्वारा दिनांक 27/01/2023 को श्री मान अनुविभागीय अधिकारी खण्ड( राजस्व) छुरा जिला गरियाबंद (छत्तीसगढ़) को लिखित में आवेदन दिया गया। अब तक जांच नहीं हुई है।

पीपर छड़ी बांध बनने का सपना देखते देखते एक पीढ़ी,खत्म हो गया ,और दूसरा कि नहीं बुढ़ा हो रहा है। इन सब कार्य में रुकावट कौन कर रहा है? क्या दिक्कत हो रहा है किनकी लापरवाही है यह जांच का विषय है। जमीन का वाटर लेवल लगातार घट रहा है। इसका कार्य एकदम कछुआ गति से चल रहा है। अब पता नहीं कब बनेगा? नेता लोग एक दूसरे पर ठीकरा जरूर छोड़ेगें। ग्लोबल न्यूज़ के संपादक सोशल मीडिया एवं स्पीड पोस्ट डाक विभाग से कर चुके हैं पर जनता इस पर दिलचस्पी नहीं ले रही है। जनप्रतिनिधि और प्रशासन पर निर्माण के लिए किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं बनता इसलिए बड़े से बड़े लोग प्रशासन और शासन कोई ज्यादा प्रभावित नहीं होते। जिन किसानों का खुद का नलकूप और बोरवेल्स है वह तो इस पर और ध्यान नहीं देते क्योंकि अपना काम है बनता और…………….जाए……..जनता।।।।

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