ऐसा युद्ध जो अन्य युद्धो से कहीं महान है :-” एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्थान की सल्तनत गंवा देता ” शेरशाह सूरी ने यह शब्द इसी महान युद्ध के बारे में कहें थे ।।यह बात है 5 जनवरी 1544 ईस्वी की — शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया था । उस समय मारवाड़ के राजा राजा मालदेव थे, जो बहुत ही आक्रमक राजाओ ने एक गिने जाते है । गिरी सुमेल नाम के स्थान पर दोनो राजाओ की सेना आमने सामने थी :–राजा मालदेव की सेना की संख्या देखकर शेरशाह शुरी घबरा गया था। अतः उसने षड्यंत्र भरी कूटनीति से काम लिया ।। राजा मालदेव के दो सेनापति थे, जेता ओर कुम्पा, जिनके नेतृत्व में ही पूरे मारवाड़ की सेना का भार था ।पाजी शेरशाह बड़ा धूर्त था, उसने मालदेव के खेमे में यह अपवाह फैला दी, की जेता ओर कुम्पा धन के लोभ में शेरशाह से मिल चुके है । राजा मालदेव अपनी सेना लेकर जेता ओर कुम्पा को छोड़कर वापस जौधपुर लौट गए ।।जेता ओर कुम्पा पर एक तरह से राष्ट्रद्रोह का ही आरोप लग चुका था, अब इस कलंक को कैसे अपने माथे से उतारे ? क्यो की राजा मालदेव के जाने के मतलब था, की जेता और कुम्पा पर आजीवन ग़द्दारी का दाग लगने वाला है ।।उन दोनों वीरो ने जीवन से ज़्यादा महत्वपूर्ण सम्मान चुना, उन्होंने आनन फानन में स्थानीय ग्रामीणों और अपने खेमे के बचे खुचे सैनिकों को मिलाकर 7000 के आसपास की सेना खड़ी की जोश भरे पराक्रम व अदम्य साहस के साथ राव जैता, राव कूंपा, नरा चौहान व अन्य सेनानायक अपने ८ हजार सैनिकों के साथ शेरशाह की ८० हजार अफगान सेना पर काल बन कर पर टूट पड़े। सख्यां बल में कम, लेकिन जुनूनी पराक्रम से लबालब इन सेना नायकों ने शेरशाह की सेना में खौफ भर दिया। मरूभूमि के रणबांकुरो के समक्ष शत्रु सेना के पैर उखड़ने लगे। शेरशाह मैदान छोड़ने का निर्णय करने ही वाला था कि इसी समय संयोग से जलालुद्दीन जलवानी अतिरिक्त सैन्य बल के साथ वहां आ पहुंचे, जिससे पासा पलट गया और प्रमुख सांमत जैता राठौड़, कूंपा राठौड़, चांग के लखा चौहान के दो पुत्र व अनेक मारवाड़ के सरदार आखिरी वक्त तक शत्रु सेना से संघर्ष करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।इस युद्ध में जेता और कुम्पा के पराक्रम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की शेरशाह भी हक्का बक्का होकर कह बैठा ” एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्थान की सल्तनत गंवा देता । “लेकिन इस इतिहास को भारत मे सम्मानजनक स्थान कभी नही मिला ।।