छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 6 मार्च सोमवार को बजट पेश किया। लेकिन विपक्ष को मुद्दा देकर के आखरी बजट में विधानसभा चुनाव को रोमांचक कर दिया। आखरी बजट है तो पहले एकतरफा कांग्रेस पार्टी का मनोबल था लेकिन बचत को देखते हुए विपक्षी पार्टी का भी मनोबल बढ़ेगी।कांग्रेस पार्टी बजट को अच्छा ही बताएगी लेकिन वास्तविकता और विश्लेषण करेंगे तो कई चीज का कमियां ,भी है,। सेवा के क्षेत्र में कर्मचारियों का वेतन वृद्धि कर रहे हैं तो वह बोझ जनता को ही पड़ेगा। उदाहरण के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को मानदेय 10, 000₹ कर दिए। सरकारी कर्मचारी ब्यूरोक्रेट कभी किसी के नहीं होते अब तक यह कांग्रेस पार्टी को समझना चाहिए। किसानों की अपेक्षा आजादी की इतिहास में देखें तो किसानों की, अनाजों में भाव का मूल्य वृद्धि 20 गुना, और कर्मचारियों का आय में 106 गुना वृद्धि हुआ है। कर्मचारियों के लिए छठा वेतन आयोग सातवां वेतन आयोग सब कांग्रेस के कार्यकाल में बना है पर किसानों के लिए अब तक के किसी भी पार्टी ने कोई आयोग का गठन नहीं किया, स्वामीनाथन कमीशन का आयोग कांग्रेस के कार्यकाल पर उसे कांग्रेस ने भी लागू नहीं कर सकी। शासकीय में अलग-अलग कर्मचारियों और सेवा कर रहे लोगों में वेतन में भारी विसंगति है। वेतन में भारी अंतर है। किसी को लाखों मिल रहा है किसी को हजारों,इसको वास्तविकता को समझना होगा। आंगनबाड़ी के कार्यकर्ता अभी वर्तमान दर पर संतुष्ट नहीं है उनका डिमांड कलेक्टर दर पर वेतन वृद्धि का मांग थी। अन्य मीडिया चैनल में इसको चुनावी बजट बता रहे है। सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कांग्रेस को वोट करेंगे हमको यकीन नहीं हो रहा है। एवं पिछले 2018 विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में किसानों का 2 साल का बकाया बोनस जो पिछली रमन सरकार नहीं दिया था उसके बारे में किसी भी प्रकार का बजट में नहीं रखा। विपक्ष यह मुद्दा तो अभी से सोशल मीडिया में उठाने लग गई है। देश के किसान अलग-अलग पार्टी में उनका वोट बट जाता है पिछले टाइम पूरे किसान एकतरफा कांग्रेस को सपोर्ट किए थे बिल्कुल अगर यह सप्लीमेंट्री बजट में नहीं लाया गया तो किसानों का वोट भी अलग-अलग पार्टी में बट सकती है। कर्मचारियों का नियमितीकरण एवं रोजगार सहायक के कर्मचारी भी नाराज हैं। एवं बिजली विभाग के संविदा कर्मचारी। बिजली विभाग स्वयं भूपेश बघेल के पास है इसमें ठेकेदारी में काम कर रहे श्रमिक भी काफी नाराज दिखाई दे रहे हैं बजट को देखते हुए। रोजगार ज्यादा मुद्दा था उसे बेरोजगारी भत्ता देकर क संतुष्ट करने का प्रयास किया जाएगा लगता है। नियमित भर्ती रोजगार नहीं देने का ठीकरा केंद्र सरकार के ऊपर भी छोड़ सकते हैं आने वाले विधानसभा चुनाव में और सब का खलनायक तो केंद्र सरकार को ही रखेंगे यह चुनाव को देखते हुए लग रहा है।