छत्तीसगढ़ सहित जिले में अधिकतर रवि फसल में धान की खेती होती है। डैम से सिंचाई के लिए रवि फसल धान, अनुमति मिलना समय पर मुश्किल भी हो जाता है क्योंकि जल स्तर और डैम की क्षमता के अनुसार से ही पानी स्टॉक के हिसाब से देख कर फैसला लिया जाता है। अधिकतर बिजली के माध्यम से नलकूप से रवि फसल की धान की सिंचाई होती है। बोरवेल्स की संख्या बढ़ोतरी होने के कारण एवं भूमिगत जल स्रोत एक सीमित जल संसाधन है इसका स्रोत घटना स्वभाविक है। जिस जगह में भूमिगत जल स्रोत 10 फीट नीचे फरवरी-मार्च तक रहता था, रवि फसल धान के बुवाई के समय एवं अभी से देखें तो कहीं 30 फीट 40 फीट नीचे जल स्तर चला गया है। जिस प्लाट में पहले लोकल हाथ बोरवेल 50 फीट में चलता था वहां अब कंप्रेसर बोर ही काम कर रहा है। मोटर की गहराई 90 फीट एवं कहीं 100 फीट से 120 फीट नीचे मोटर चल रहा है। आने वाले समय में कई बोरवेल्स फेल भी हो सकते हैं। छुरा विकासखंड क्षेत्र में जब तक पिपरछेड़ी डैम नहीं बनता है जल स्तर बराबर होना मुश्किल रहेगा। घाटी के ऊपर जतमई एवं गायडडरी तालेसर गांव में बोरवेल्स लगभग 200 फीट बाई 250 फीट नीचे से पानी निकाल कर के धान के फसल के लिए सिंचाई होती है। भूमिगत जल स्रोत निश्चित समय में उसका जल स्रोत परिवर्तन होते रहता है इस कारण बोरवेल से पानी कम भी हो जाता है अंदर का भूगोल परिवर्तन होने के कारण पानी का दिशा समय-समय पर बदलता है। राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार किसानों को अलग-अलग माध्यम से योजना के माध्यम से बिजली में सब्सिडी एवं कई प्रकार की सहायता देती है बैंक से कर्ज देती है इसका उचित लाभ जरूर उठाएं और किसानों की आय दोगुनी करने के लिए हमेशा अन्य किसानों को जागरूक करें।


