लोकतंत्र के तीन स्तंभ है व्यवस्थापिका कार्यपालिका और न्यायपालिका। अंग्रेजों के आजादी के बाद लोकतंत्र भारत में आया है। जब-जब सत्ता मजबूत हाथों में होती है तब तब न्यायपालिका खतरे में रहती है। यह स्वर्गीय इंदिरा गांधी के समय भी कोशिश हुआ था और आज मोदी के कार्यकाल में ही शुरू हो गया है। देश के कानून मंत्री जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा है। देश में कई मामले पेंडिंग है जजों की नियुक्ति हो नहीं रही है। बीजेपी जजों की नियुक्ति पर सवाल उठा रही है। कुछ तो ठीक है लेकिन जजों की नियुक्ति अगर सरकार करेगी तो सरकार के खिलाफ फैसला जज कर ही नहीं सकते। जो जज सरकार के रहमो करम पर चुनेंगे सरकार के खिलाफ फैसला जनता के लिए एवं लोकतंत्र के लिए बहुत चुनौती साबित हो जाएंगे। सरकार अगर गलत करेगी तो जनता न्याय के लिए किसके पास जाएंगे यह सवाल पैदा हो रहा है। जो जज राम मंदिर के लिए फैसला किया। यानी राम मंदिर के लिए पक्ष में फैसला किया उसको आप रिटायरमेंट के बाद किसी राज्य का गवर्नर बना दिए। कई ऐसे जज है उनको राज्यसभा सांसद बना रहे हैं। हालांकि गवर्नर संवैधानिक पद है। पर किसी पार्टी और संगठन से बनने से जनता के बीच गलत मैसेज बिल्कुल जा रहा है। नोटबंदी के प्रक्रिया पर माननीय सुप्रीम कोर्ट में याचिका हुआ और सुनवाई भी हुआ और फैसला भी हुआ नोटबंदी का प्रक्रिया को सही ठहराया गया माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा लेकिन नोटबंदी के परिणाम क्या हुआ यह आज भी सवालों के दायरे में है। लोकतंत्र के चौथा स्तंभ मीडिया पर तो सवाल पहले से ही उठ रहे हैं यह सरकार के हिसाब से काम कर रही है जो दिखाना है नहीं दिखा रही है जो जनता को बताना है नहीं बता रही है। मुद्दों को भड़काने का काम मीडिया भी करने लग गई है। देश में हिंदू मुस्लिम धार्मिक जातिवाद भड़काने का काम मीडिया करने लग गई है। आने वाला समय चिंतनीय है।