कोई भी सरकारी काम ठेकेदारी से होगा, आजादी के 75 साल हो गया पहले की सरकार में भी यही सिस्टम था और दूसरे सरकार आ जाने के बाद भी कोई पारदर्शिता नहीं है,। पूर्व की सरकारों ने जो किया सो किया आपने क्या किया,? केंद्रीय परिवहन मिनिस्टर नितिन गडकरी के नेतृत्व में कई एक्सप्रेस वे हाईवे देश में बढ़ रहे हैं पर स्टेमेट भारी-भरकम और सरकारी पैसा जो बच रहा है सीधे किसके जेब में जा रहा है यह सवाल पैदा होता है। इस रोड में लगे पब्लिक बोर्ड को अध्ययन करके देखें 37.7 किलोमीटर रोड निर्माण में 108 करोड़ रुपए। तो यह सवाल पैदा होता है मुरूम का कितना पैसा एस्टीमेट बनाए हैं,। ठेकेदार ने मुरूम मुरूम खड़मा मड़ेली के गांव के तालाबों से उठा लिया। देश में रोजगार गारंटी अधिनियम है तो ग्रामीण लोग गहरीकरण करने के लिए तलाब में अब मिट्टी मुरूम बचा ही नहीं तो मजदूर आने वाला समय में क्या करेंगे। स्टीमेट किस प्रकार के बनाया जाता है कितना पैसा जोड़ा जाता है या पब्लिक बोर्ड में नहीं लिखा जाता यही सिस्टम में कमजोरी है। क्या एडीबी प्रोजेक्ट वाले खड़मा मड़ेली एवं किसानों के राजस्व पट्टे में दिए भूमि से भी मिट्टी निकालेंगे यह एस्टीमेट पहले से बना चुके थे या कहां से मुरूम मिट्टी निकालेंगे उसका एस्टीमेट बनाए थे। सवाल यह है अगर इसको पारदर्शिता लाते हैं तो 108 करोड का टेंडर कम में भी बन सकता था।