दिवाली के बाद क्रिसमस आने तक इंडियन करेंसी दिवाला !

कोविड-19 के बाद, रशिया और यूक्रेन का युद्ध पूरे दुनिया को प्रभावित कर रहा है। पूरे अन्य देशों का सेंट्रल बैंक अपने ब्याज दर में बढ़ोतरी कर रही है। भारत को भी आईएमएफ ने चेतावनी दिया है। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है लगातार डॉलर के मुकाबले रुपया गिर रहा है आने वाला समय में $1 सौ रुपए के बराबर ना हो जाए। भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया का इकोनामी पचासी परसेंट इकोनामी डॉलर पर टिका हुआ है। रुपया लगातार गिर रहा है और ना गिर जाए इसलिए जो निवेश करता है वह देश छोड़कर रुपए को डालर में बदलकर यहां से बाजार को खत्म कर वापस जा रहे हैं। इससे आयात निर्यात में बहुत फर्क पड़ेगा, व्यापारिक घाटा बढ़ोतरी के कारण महंगाई एवं बेरोजगारी के साथ-साथ देश के सामने बहुत बड़ा आर्थिक संकट है,। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास जो सोना है उसे गिरवी रखने के अलावा दूसरा कोई और रास्ता नहीं है,। देश के जो बैंक है उनके पास कर्ज देने की क्षमता नहीं रहेगी, विश्व बैंक जो कर्ज देती है वह भी हाथ खड़ा कर देंगे,। केंद्र सरकार के पास बड़ी चुनौती सामने दिखाई दे रही है। सरकार जो कमाई करती है वह विदेश से आने वाले हैं ऊर्जा के सेक्टर पेट्रोल बिजली और डीजल पर टैक्स के रूप में कमाई करती है। इसे पेट्रोल डीजल एवं सोना में उनके दाम में भारी तेजी रहेगी। इकोनॉमी के रोजगार देने वाले प्राइवेट सेक्टर से नौकरियां गायब होती जाएंगी। मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तो $1 ₹69 था,। अब तक के भारत के इकोनॉमी इतिहास में सबसे बड़ी गिरावट है। भारत का इकोनामी ब्लैक मनी के रूप में जमा हो गया है एवं बांड के जरिए दिखाई देता है जिसका जानकारी केवल रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एवं भारत की सबसे बड़ी बैंक एसबीआई स्टेट बैंक को ही बस पता है। भारत की संवैधानिक संस्था प्रवर्तन निदेशालय एवं इनकम टैक्स भी आज तक ढूंढ नहीं पाई आखिर ब्लैक मनी गोल्ड में छिप गया है या डिजिटल बांड में,। मतलब जिसके पास सत्ता रहती है रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, प्रभावित कर देती है, सुप्रीम कोर्ट ने भी नोटबंदी के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से एवं वर्तमान केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। देश के अर्थव्यवस्था के बिगड़े हालात के लिए कई अर्थशास्त्री नोटबंदी खराब जीएसटी पॉलिसी को मानते हैं। देश के कई ऐसे प्राइवेट मीडिया वाले भी है जो सच्चाई जनता के पास नहीं लाते केंद्र सरकार के कठपुतली की तरह काम करने लग जाते हैं। राजनीतिक दलों को फंडिंग करने वाले कॉर्पोरेट का अब सीधा नजर एग्रीकल्चर सेक्टर पर है। क्योंकि कॉर्पोरेट को पता है गोल्ड को खा नहीं सकते लेकिन अनाज के दामों में नियंत्रण करके, अपने हिसाब से खाद्य पॉलिसी बनाकर या बनवा कर, अनाज के भाव भी कुछ दिन के बाद कॉर्पोरेट तय करेंगे, आम उपभोक्ता की आय बढ़ेगी या महंगाई बढ़ेगी यही भविष्य का सबसे बड़ा सवाल है? कहीं भारत की अर्थव्यवस्था विदेश के हाथों में ना चली जाए। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है जो सत्ता को चुने है, या सवाल नहीं उठाने वाले विपक्ष एवं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ माने वाले ने वाले मीडिया। या फिर से उनको सत्ता सौंपने वाली भारत की जनता।

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